सोमवार, 2 मार्च 2020

*२. स्मरण का अंग ~ ६५/६८*

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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*पंडित श्री जगजीवनदास जी की अनभै वाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२. स्मरण का अंग ~ ६५/६८*
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हरि भजि रे रमि रांम सूं, पाप वृंद१ कटि जांहि ।
जगजीवन गहरी सुरति, गोबिन्द के गुण गांहि ॥६५॥
संत कहते हैं कि हरि का भजन करें व राम नाम का स्मरण करें इससे पाप समूह मिट जाते है गहन ध्यान करें व प्रभु महिमा गायें यह ही करने योग्य है। (१. पाप वृंद-पाप समूह)
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हरि सुमिरन करि लीजिये, ज्यौं कछु इक हाँसिल२ होइ ।
जगजीवन रमि रांम सौं, कहि समझाऊँ तोहि ॥६६॥
संत कहते है अगर संसार में कुछ पाना है तो हरि स्मरण करें राम नाम में चित लगायें ऐसा संत समझाते हैं। (२. हाँसिल-प्राप्त)
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रोम रोम सुमिरन ह्रिदें, अलख निरंजन नाम ।
जगजीवन रमि रांम सौं, दिन प्रति दरसन रांम ॥६७॥
संत कहते है कि रोम रोम से ईश्वर का स्मरण उस अलख निरंजन प्रभु का ध्यान करें राम में रत रहै संत कहते है इस स्थिति में नित्य ईश्वर के दर्शन होते हैं।
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हरि महिमा हरि हरि भगत, रांम रांम ल्यौ३ लाइ ।
कहि जगजीवन सहज धरि, सब अंग देखै आइ ॥६८॥
संत कहते हैं कि प्रभु के गुणानुवाद हरि के भक्त करते हैं, वे राम नाम से लय लगाये रहते हैं, तब सब कुछ सहज रहता है व प्रभु पूर्ण निर्वहन करते हैं।
(३. ल्यौ-लय, एकाग्र ध्यान)
(क्रमशः)

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