शुक्रवार, 20 मार्च 2020

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*ज्यों ज्यों होवै त्यों कहै, घट बध कहै न जाइ ।*
*दादू सो सुध आत्मा, साधू परसै आइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *सरलता*
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एक राजा को सभा मण्डप बनवाने के लिये एक शहरीर की आवश्यक्ता हुई । बहुत खोज करने पर एक शहरीर मिला । जब वह राजधानी में लाया गया तब मंत्री आदि के सहित राजा तथा प्रजा उसे देखने गये । उसी भीड़ में एक संत भी मिले । संत ने शहरीर के पास जाकर धीरे - धीरे से कुछ कहा और हट गये । 
राजा संत से बोले - 'आपने क्या कहा ?' संत- "मैंने शहरीर से पूछा था कि तेरा इतना सम्मान किस कारण से हुआ है । शहरीर ने कहा कि सीधापन से हुआ है और कोई कारण नहीं ।" इससे सूचित होता है कि सीधापन से जब जड़ का भी सम्मान होता है तब मनुष्य का हो इसमें तो कहना ही क्या है ?
विदित सरलता से अधिक, होता है सम्मान ।
लखन सरल शहरीर को, गये करा बहु मान ॥१६५॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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