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*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग आसावरी ९ (गायन समय प्रात: ६ से ९)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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२१८ - उपदेश चेतावनी । राजमृगाँक ताल
रे मन, गोविन्द गाइ रे गाइ,
जन्म अविरथा जाइ रे जाइ ॥टेक॥
ऐसा जनम न बारम्बारा,
तातैं जप ले राम पियारा ॥१॥
यहु तन ऐसा बहुरि न पावै,
तातैं गोविन्द काहे न भावे॥२॥
बहुरि न पावै मानुष देही,
तातैं करले राम सनेही॥३॥
अब के दादू किया निहाला,
गाइ निरंजन दीन दयाला॥४॥
उपदेश द्वारा मन को सचेत कर रहे हैं - अरे मन ! निरन्तर गोविन्द नाम का चिन्तन कर, भजन बिना यह नर जन्म प्रतिक्षण व्यर्थ जा रहा है ।
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ऐसा जन्म बारम्बार नहीं मिलता । इसलिये प्रियतम राम के नाम का जप कर ।
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जब मैं तुझे कह रहा हूं कि ऐसा जन्म पुन: नहीं प्राप्त होगा, फिर भी तू गोविन्द के गुण क्यों नहीं गाता ?
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तू भजन द्वारा राम को अपना स्नेही कर ले, इससे तेरा आत्मा पुन: मनुष्य देह को भी न प्राप्त होकर राम में ही मिल जायेगा ।
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उन भगवान् ने अबकी बार तुझे शरीर और सत्संग देकर आनन्दित कर दिया है । अत: उन दीनदयालु निरंजन राम के नाम और गुणों का गायन कर ।
(क्रमशः)
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