बुधवार, 18 मार्च 2020

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*दादू साधु गुण गहै, औगुण तजै विकार ।* 
*मानसरोवर हंस ज्यूं, छाड़ि नीर, गहि सार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ सारग्राही का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *सरलता*
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एक संत भिक्षा के लिये एक घर में गये । घरवाले ने क्रोधित होकर कहा - यहां क्यों आया है ? जूते खायेगा क्या ? सन्त - रोटी नहीं मिलेगी तो जूते भी खा लेंगे । यह सुनते ही घरवाले का क्रोध शांत हो गया और उसने क्षमा मांगकर संत को सादर भिक्षा दी ।
क्रोधी के भी क्रोध को, शांत सरल कर देत ।
जूते खासी सुन कहा, रोटी बिन खा लेत ॥१६३॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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