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*दादू जब दिल मिली दयालु सौं,*
*तब पलक न पड़दा कोइ ।*
*डाल मूल फल बीज में, सब मिल एकै होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}*
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*गुरुशिष्य-संवाद-गुह्यकथा*
शाम हो गयी । कालीमन्दिर, राधाकान्तजी के मन्दिर और अन्यान्य कमरों में बत्तियाँ जला दी गयी । श्रीरामकृष्ण अपनी छोटी खाट पर बैठे हुए जगन्माता का स्मरण कर रहे हैं । तदनन्तर वे ईश्वर का नाम जपने लगे । घर में धूनी दी गयी है । एक ओर दीवट पर दिया जल रहा है । कुछ देर बाद शंख घण्टा आदि बजने लगे । कालीमन्दिर में आरती होने लगी । तिथि शुक्ल दशमी है; चारों ओर चाँदनी छिटक रही है । आरती हो जाने पर कुछ क्षण बाद श्रीरामकृष्ण मणि के साथ अकेले अनेक विषयों पर बातें करने लगे । मणि फर्श पर बैठे हैं ।
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“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”
श्रीरामकृष्ण-कर्म निष्काम करना चाहिए । ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जो कर्म करता वे अच्छे हैं’ वह निष्काम कर्म करने की चेष्टा करता है ।
मणि- जी हाँ । अच्छा; जहाँ कर्म है वहाँ क्या ईश्वर मिलते हैं? राम और काम क्या एक ही साथ रहते हैं? हिन्दी में मैंने पढ़ा है कि ‘जहाँ काम तहँ राम नहिं, जहाँ राम नहिं काम ।’
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श्रीरामकृष्ण- कर्म सभी करते हैं । उनका नाम लेना कर्म है- साँस लेना और छोड़ना भी कर्म है । क्या मजाल है कि कोई कर्म छोड़ दे ! इसलिए कर्म करना चाहिए, किन्तु फल ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए ।
मणि- तो क्या ऐसी चेष्टा की जा सकती है कि जिससे अधिक धन मिले ?
श्रीरामकृष्ण- हाँ, की जा सकती है किन्तु यदि विद्या का परिवार हो, तो । अधिक घन कमाने का प्रयत्न करो, परन्तु सदुपाय से । उद्देश्य उपार्जन नहीं, ईश्वर की सेवा है । धन से यदि ईश्वर की सेवा होती है तो धन में दोष नहीं है ।
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मणि- घरवालों के प्रति कर्तव्य कब तक रहता है ?
श्रीरामकृष्ण- उन्हें भोजनवस्त्र का अभाव न हो । सन्तान जब स्वयं समर्थ होगी, तब भार-ग्रहण की आवश्यकता नहीं । चिड़ियों के बच्चे जब खुद चुगने लगते हैं तब माँ के पास यदि खाने के लिए आते हैं तो माँ चोंच मारती है ।
मणि- कर्म कब तक करना होगा ?
श्रीरामकृष्ण- फल होने पर फूल नहीं रह जाता । ईश्वरलाभ हो जाने से कर्म नहीं करना पड़ता, मन भी नहीं लगता ।
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“ज्यादा शराब पी लेने से मतवाला होश नहीं सम्हाल सकता-दुअन्नीभर पीने से कामकाज कर सकता है । ईश्वर की ओर जितना ही बढ़ोगे उतना ही वे कर्म घटाते रहेंगे । डरो मत । गृहस्थ की बहू के जब लड़का होनेवाला होता है तब उसकी सास धीरे धीरे काम घटाती जाती है । दसवें महीने में काम छूने भी नहीं देती । लड़का होने पर वह उसी को लिए रहती है ।
“जो कुछ कर्म है, जहाँ वे समाप्त हो गए चिन्ता दूर हो गयी । गृहिणी घर का सारा कामकाज समाप्त करके जब कहीं बाहर निकलती, तब जल्दी नहीं लौटती, बुलाने पर भी नहीं आती ।”
(क्रमशः)
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