सोमवार, 2 मार्च 2020

*२. स्मरण का अंग ~ ७७/८०*

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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*पंडित श्री जगजीवनदास जी की अनभै वाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२. स्मरण का अंग ~ ७७/८०*
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पैड़ी२ पाई पुण्य की, नहीं पाप सौं कांम ।
जगजीवन सुमिरन सरस, नित उठि लीजै नांम ॥७७॥
संत कहते हैं कि हमें पुण्य की सीढी मिली है अब हमारा पाप से कोइ मतलब नहीं है। संत जगजीवन जी महाराज कहते हैं कि इस सुन्दर सरस नाम को नित्य स्मरण करें। (२. पैडी-सीढी, मकान आदि पर चढाने के लिये क्रमशः ऊँचा मार्ग)
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नित नवतम हरि नांव सौं, आतम उत्तिम घाट३ ।
जगजीवन करतार भजि, कदे न लागै काट४॥७८॥
संत कहते हैं कि नित्य नवीन नाम को अंतरात्मा के पवित्र उतम घाट पर ले जाकर स्मरण करने से उसमें कभी जंग नहीं लगता, कोई विघ्न नहीं आता सदा नवीनता बनी रहती है। अतः निरंतर भजन करें। (३. घाट-मार्ग या उपाय) (४. काट-काँटा, विघ्न)
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अति हि आनंद चैन अति, अति ही प्रेम निवास ।
सुमिरन करतां ऊपजै, सु कहि जगजीवनदास ॥७९॥
संत कहते हैं कि अतिशय प्रेमपूर्वक किये हुये नाम स्मरण द्वारा अतिशय आनंद, अति विश्राम की अवस्था का अनुभव होता है व ऐसा ही स्मरण संतो द्वारा श्रेष्ठ कहा गया है।
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आठों पहर अखंड धुनि, हरि सुमिरन सौं काम ।
जगजीवन परिहरि सकल, अैसैं भजि ले रांम ॥८०॥
संत कहते हैं कि आठों पहर अर्थात दिवा रात्रि बिना रुके, निरंतर हरि स्मरण ही हमारा काम हो, सब छोड़कर सिर्फ इस प्रकार भजन करें।
(क्रमशः)

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