सोमवार, 2 मार्च 2020

*पाप की जिम्मेदारी और कर्मफल*

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*दादू बुरा न बांछै जीव का, सदा सजीवन सोइ ।* 
*परलै विषय विकार सब, भाव भक्ति रत होइ ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ दयानिर्वैरता का अंग)* 
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*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* 
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ 
पड़ोसी- महाराज, पाप बुद्धि क्यों होती है? 
श्रीरामकृष्ण- उनके जगत् में सभी प्रकार है । साधु लोग भी उन्होंने बनाए हैं, दुष्ट लोगों को भी उन्होंने ही बनाया है । सद्बुद्धि भी वे ही देते हैं और असद् बुद्धि भी । 
*पाप की जिम्मेदारी और कर्मफल* 
पड़ोसी- क्या पाप करने पर हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है? 
श्रीरामकृष्ण-ईश्वर का नियम है कि पाप करने पर उसका फल भोगना पड़ेगा । मिर्च खाने पर क्या तीखा न लगेगा? सेजो बाबू ने अपनी जवानी में बहुत-कुछ किया था, इसलिए मरते समय उन्हें अनेक प्रकार के रोग हुए । कम उम्र में इतना पता नहीं चलता । कालीबाड़ी में भोजन पकाने के लिए सुन्दरवन की लकड़ी रहती है । वह गीली लकड़ी पहले-पहले अच्छी जलती है । उस समय मालुम भी नहीं होता कि इसके अन्दर जल है । लकड़ी का जलना समाप्त होते समय सारा जल पीछे की ओर आ जाता है और फैंच-फैंच करके चूल्हे की आग बुझा देता है । इसीलिए काम, क्रोध, लोभ-इन सब से सावधान रहना चाहिए । देखो न, हनुमान ने क्रोध में लंका जला दी थी । अन्त में ख्याल आया, अशोकवन में सीता हैं । तब सटपटाने लगे कि कहीं सीताजी को कुछ न हो जाय । 
पड़ोसी- तो ईश्वर ने दुष्ट लोगों को बनाया ही क्यों ? 
श्रीरामकृष्ण-उनकी इच्छा, उनकी लीला । उनकी माया में विद्या भी है, अविद्या भी । अन्धकार की भी आवश्यकता है । अन्धकार रहने पर प्रकाश की महिमा और भी अधिक प्रकट होती है । काम, क्रोध, लोभादि खराब चीज तो अवश्य हैं, परन्तु उन्होंने ये दिये क्यों? दिये महान् व्यक्तियों को तैयार करने के लिए । मनुष्य इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने से महान् होता है । जितेन्द्रिय क्या नहीं कर सकता? उनकी कृपा से उसे ईश्वरप्राप्ति तक हो सकती है । फिर दूसरी ओर देखो, काम से उनकी सृष्टि की लीला चल रही है । 
“दुष्ट लोगों की भी आवश्यकता है । एक गाँव के लोग बहुत उद्दण्ड हो गए थे । उस समय वहाँ गोलोक चौधरी को भेज दिया गया । उसके नाम से लोग काँपने लगे-इतना कठोर शासन था उसका । अतएव अच्छे-बुरे सभी तरह के लोग चाहिए । सीताजी बोलीं- ‘राम, अयोध्या में यदि सभी सुन्दर महल होते तो कैसा अच्छा होता ! मैं देख रही हूँ अनेक मकान टूट गए हैं, कुछ पुराने हो गए हैं ।’ श्रीराम बोले, ‘सीता, यदि सभी मकान सुन्दर हों तो मिस्त्री लोग क्या करेंगे?’ (सभी हँस पड़े ।) ईश्वर ने सभी प्रकार के पदार्थ बनाए हैं-अच्छे पेड़, विषैले पेड़ और व्यर्थ के पौधे भी । जानवरों में भले-बुरे सभी हैं-बाघ, शेर, साँप-सभी हैं ।” 
संसार में भी ईश्वरप्राप्ति होती हैं । सभी की मुक्ति होगी । 
पड़ोसी- महाराज, संसार में रहकर क्या भगवान् को प्राप्त किया जा सकता है ? 
श्रीरामकृष्ण- अवश्य किया जा सकता है । परन्तु जैसा कहा, साधुसंग और सदा प्रार्थना करनी पड़ती है । उनके पास रोना चाहिए । मन का सभी मैल धुल जाने पर उनका दर्शन होता है, मन मानो मिट्टी से लिपटी हुई एक लोहे की सुई है-ईश्वर हैं चुम्बक । मिट्टी रहते चुम्बक के साथ संयोग नहीं होता । रोते रोते सुई की मिट्टी धुल जाती है । सुई की मिट्टी अर्थात् काम, क्रोध, लोभ, पापबुद्धि विषयबुद्धि आदि । मिट्टी धुल जाने पर सुई को चुम्बक खींच लेगा अर्थात् ईश्वरदर्शन होगा । चित्तशुद्धि होने पर ही उनकी प्राप्ति होती है । ज्वर चढ़ा है, शरीर मानो भुन रहा है, इसमें कुनैन से क्या काम होगा ? 
“संसार में ईश्वरलाभ होगा क्यों नहीं? वही साधुसंग, रो-रोकर प्रार्थना, बीच बीच में निर्जनवास; चारों ओर कटघरा लगाए बिना रास्ते के पौधों को गाय-बकरियाँ खा जाती है ।” 
पड़ोसी- तो फिर जो लोग संसार में हैं उनकी भी मुक्ति होगी ? 
श्रीरामकृष्ण- सभी की मुक्ति होगी । गुरु के उपदेश के अनुसार चलना पड़ता है, टेढ़े रास्ते से जाने पर फिर सीधे रास्ते पे आने में कष्ट होगा । मुक्ति बहुत देर में होती है । शायद इस जन्म में न भी हो । फिर सम्भव है अनेक जन्मों के पश्चात् हो । जनक आदि ने संसार में भी कर्म किया था । ईश्वर को सिर पर रखकर काम करते थे । नाचनेवाली जिस प्रकार सिर पर बर्तन रखकर नाचती है । और पश्चिम की औरतों को नहीं देखा, सिर पर जल का घड़ा लेकर हँस-हँसकर बातें करती हुई जाती हैं ? 
(क्रमशः)

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