बुधवार, 8 अप्रैल 2020

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*ता माली की अकथ कहानी,*
*कहत कही नहिं आवै ।*
*अगम अगोचर करत अनन्दा,*
*दादू ये जस गावै ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ३७०)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *अर्चना भक्ति*
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एक अर्थार्थी भक्त को भगवत् पूजन से धन नहीं मिला तब वह अन्य के उपदेश से भगवत् मूर्ति को ऊंचे ताक में रख कर दुर्गा मुर्ति का पूजन करने लगा । एक दिन उसके मन में यह भाव उठा कि जो धूप दुर्गा को देता हूं वह भगवत् को पहुंचती होगी । इससे भगवत् मूर्ति के नाक में रूई भरने लगा । उसी क्षण भगवान् प्रसन्न होकर बोले - 'जो इच्छा हो मांग ले ।' वह बोला - 'पूजा से तो आप प्रसन्न नहीं हुये और आज नाक में रूई देने से कैसे प्रसन्न हुये ।' भगवन - 'जब तू पूजा करता था तब पत्थर की मूर्ति मानता था किन्तु आज साक्षात चेतन रूप मान करके नाक में रूई देने लगा है, यही मेरी प्रसन्नता का कारण है ।' यह कहकर उसे इच्छा के अनुसार वर दे दिया । इससे सूचित होता है कि प्रतिमा को साक्षात भगवान रूप समझ कर पूजा करने से ही सफलता मिलती है ।
प्रतिमा को हरि समझकर, पूजे लाभ महान ।
देत नाशिक में रूई, प्रगट भये भगवान ॥१३१॥ 
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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