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*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग आसावरी ९ (गायन समय प्रात: ६ से ९)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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२३३ - समर्थाई । रँग ताल
जीवत मारे मुये जिलाये,
बोलत गूँगे गूँग बुलाये ॥टेक॥
जागत निश भर सोई सुाये,
सोवत रैनी सोई जगावे ॥१॥
सूझत नैनहुं लोइन१ लीये,
अँध विचारे ता मुख दीये ॥२॥
चलते भारी२ ते बिठलाये,
अपँग विचारे सोई चलाये ॥३॥
ऐसा अद्भुत हम कुछ पाया,
दादू सद्गुरु कह समझाया ॥४॥
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ईश्वर की सामर्थ्य दिखा रहे हैं - जिसने जीवितों को मारा और मृतकों को जीवित किया, बोल ने वालों को गूँगे और गूँगों को बोल ने वाले बना दिया ।
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प्रति रात्रि भर जगने वालों को निद्राधीन कर दिया, प्रति रात्रि भर सोने वालों को जागने की शक्ति प्रदान की ।
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नेत्रों से देखने वालों के नेत्र१ ले लिये और जो बेचारे अँधे था, उनके चेहरे पर नेत्र लगा दिये ।
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बहुत२ चलने वाले था, उनको एक स्थान में बैठा दिये और जो बेचारे अपँग था, उनको चला दिये ।
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सद्गुरु ने बारँबार कहकर समझाया है, तब कुछ ऐसा अद्भुत तत्व हमने प्राप्त किया है ।
(क्रमशः)
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