मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

= २४३ =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷 
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग आसावरी ९(गायन समय प्रातः ६ से ९)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
२४३ - हैरान । राज विद्याधर ताल
थकित भयो मन कह्यो न जाई, 
सहज समाधि रह्यो ल्यौ लाई ॥टेक॥
जे कुछ कहिये सोच विचारा, 
ज्ञान अगोचर अगम अपारा ॥१॥
साइर१ बूँद कैसे कर तोलै, 
आप अबोल कहा कह बोलै ॥२॥
अनल पँखि परे पर दूर, 
ऐसे राम रह्या भरपूर ॥३॥
अब मन मेरा ऐसे रे भाई, 
दादू कहबा कहण न जाई ॥४॥
२४३ - २४५ में परब्रह्म स्वरूप सम्बन्धी आश्चर्य दिखा रहे हैं - 
हम से तो उस परब्रह्म का अन्त नहीं कहा जाता । हमारा मन तो थक गया है । हम तो अब सहज समाधि में उसके स्वरूप में वृत्ति लगा करके ही स्थित रहते हैं । 
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जो भी कुछ सोच विचार करके कहते हैं, तो वह ज्ञान के द्वारा इन्द्रियों से परे और मन से अगम, अपार ही कहा जाता है । 
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बुद्धिरूप बिन्दु ब्रह्म - सागर१ का माप - तोल कैसे कर सकती है ? और वह स्वयँ तो वचनातीत है, उसे क्या कहकर कहा जाय ? 
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जैसे अनल पक्षी आकाश में रहता है किन्तु आकाश उसके माप के परे ही रहता है, वह आकाश का पार नहीं पाता, वैसे ही राम में सब रहते हैं और राम सब में परिपूर्ण रूप से रहने पर भी सब से दूर हैं, उनका पार कोई भी नहीं पाता । 
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हे भाई ! अब मेरे मन की तो ऐसी दशा हो रही है - वह प्रभु के स्वरूप सम्बन्ध में कहना चाहता है किन्तु उससे कहा नहीं जाता । कारण, उसमें अनुभव करने की शक्ति है, कहने की नहीं । वाणी में कहने की है, अनुभव करने की नहीं । अत: ब्रह्म स्वरूप अकथनीय तथा आश्चर्य रूप है ।
(क्रमशः)

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