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*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग आसावरी ९ (गायन समय प्रात: ६ से ९)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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२३९ - निज उपदेश । त्रिताल
सुख दुख सँशय दूर किया,
तब हम केवल राम लिया ॥टेक॥
सुख दुख दोऊ भरम विकारा,
इन सौं बंध्या है जग सारा॥१॥
मेरी मेरा सुख के ताँई,
जाय जन्म नर चेते नाँहीं ॥२॥
सुख के ताँई झूठा बोलै,
बांधे बन्धन कबहुँ न खोलै ॥३॥
दादू सुख दुख संग न जाई,
प्रेम प्रीति पिव सौं ल्यौ लाई ॥४॥
निज अनुभव युक्त उपदेश कर रहे हैं - साधन से सुख होगा वो दु:ख होगा, यह सँशय दूर करके प्रेम पूर्वक प्रभु का भजन किया जब हमने अद्वैत राम को आत्म रूप से प्राप्त किया है ।
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भ्रम पूर्ण विचारों के द्वारा इन दोनों सुख - दु:ख द्वन्द्वों से सब जगत् बंधा हुआ है ।
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साँसारिक सुख के लिए मेरी - मेरी करते जीवन नष्ट होता जा रहा है किन्तु मनुष्य - कल्याणार्थ सावधान नहीं होता ।
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विषय - सुख के लिए मिथ्या बोता है । कर्म - बँधन बाँध रक्खे हैं, आत्मज्ञान द्वारा उन्हें खोने का प्रयत्न कभी भी नहीं करता
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किन्तु स्मरण रखना चाहिए सुख दु:ख अनित्य हैं, साथ न जायेंगे, इसलिए प्रेम - साधना का आश्रय लेकर प्रीति सहित प्रभु में वृत्ति लगाओ ।
(क्रमशः)
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