रविवार, 5 अप्रैल 2020

= २३४ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग आसावरी ९ (गायन समय प्रात: ६ से ९)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
२३४ - प्रश्न । रँगताल
क्यों कर यह जग रच्यो गुसाँई, 
तेरे कौन विनोद बन्यो मन माँहीं ॥टेक॥
कै तुम आपा परकट करना, 
कै यहु रचले जीव उधरना ॥१॥
कै यहु तुम को सेवक जानैं, 
कै यहु रचले मन के मानैं ॥२॥
कै यहु तुम को सेवक भावै, 
कै यहु रचले खेल दिखावै ॥३॥
कै यहु तुम को खेल पियारा, 
कै यहु भावै कीन्ह पसारा ॥४॥
यहु सब दादू अकथ कहानी, 
कह समझावो सारँग१ प्रानी ॥५॥
प्रभु से जगत रचना विषयक प्रश्न कर रहे हैं - हे प्रभो ! यह सँसार किसलिये रचा है ? आपके मन में कौन - सा खेल करने का सँकल्प बन गया था ? 
.
क्या आप अपने को प्रकट करना चाहते था वो जीवों के उद्धारार्थ यह रच लिया है ? 
.
वो यह इसलिए रचा है - आपके कार्य को देखकर आपके सेवक आपको पहचान जायें ? वो निष्प्रयोजन मनमाने ढँग से ही यह बना दिया है ? 
.
वो आपको सेवक प्रिय लगते हैं, इसलिए उनको उत्पन्न करने के लिए यह रचा है ? वो केवल खेल दिखाने के लिए ही यह रच दिया है ? 
.
वो आपको खेल प्रिय है, इसलिए यह रचा है ? वो फैलाव करना आपको अच्छा लगता है, इसलिए यह रचा है ? 
.
अन्यों के लिए यह सब कथा अकथनीय है । अत: हे परमेश्वर१ ! प्राणी आदि सृष्टि - रचना में क्या हेतु है, आप ही कहकर समझाओ ।
उत्तर की साखी -
दादू परमारथ को सब किया, आप स्वारथ नाँहिं ।
परमेश्वर परमारथी, कै साधू कलि माँहिं ॥
(१५ - ५०)
खालिक खेले खेल कर, बूझै विरला कोइ ।
लेकर सुखिया ना भया, देकर सुखिया होइ ॥
(२१ - ३७)
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें