🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू सहजैं सहजैं होइगा, जे कुछ रचिया राम ।*
*काहे को कलपै मरै, दुःखी होत बेकाम ॥*
========================
*श्री रज्जबवाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
*विश्वास संतोष का अंग ११२*
.
जाने जीव बैठे सिदक१ घरि, साहिब के दरबार ।
तो रज्जब बाकी कहा, पीछे पले हजार ॥६१॥
यदि जीव सच्चे१ संतोष रूप घर में रहते हुये प्रभु के दरबार में उपस्थित हो तो बाकी क्या रह जाता है ? फिर तो उसके पीछे भी हजारों की पालना होती है ।
.
विश्वासी बैठ्या रहै, हरि भेजे सो खाय ।
रज्जब अजगर की दशा, चलि कतहूं नहिं जाय ॥६२॥
विश्वासी भक्त भजन में ही बैठा रहता है, जो भी हरि भेज देते हैं, उसे ही खाकर निर्वाह करता है, जैसे अजगर कहीं नहीं जाता है, वैसे ही वह भी भजन को छोङकर कहीं भी नहीं जाता ।
.
भावै कुंभहिं कूप भरि, भावै भरो समुद्र ।
जन रज्जब परवान परि, अधिकी चढै न बुंद ॥६३॥
घङे को चाहे कूप पर भरो और चाहे समुद्र में भरो, उसके माप से अधिक एक बिन्दु भी उसमें नहीं आयेगा । वैसे ही कहीं भी जाओ अपने प्रारब्ध के अनुसार ही मिलेगा, अधिक कुछ भी नहीं मिलेगा ।
.
अन विश्वासी आतमा, करै अनेक उपाय ।
रज्जब आवै हाथ सो, जो कुछ राम रजाय ॥६४॥
ईश्वर विश्वास रहित प्राणी अनेक उपाय करता है किन्तु जो राम की इच्छा होती है वही उसे मिलता है ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें