गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

*३. नांम कौ अंग ~ १४९/१५२*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*पंडित श्री जगजीवनदास जी की अनभै वाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त Ram Gopal तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*३. नांम कौ अंग ~ १४९/१५२*
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पवन२ सकल हरि हरि करे, मन परि टेरे रांम ।
कहि जगजीवन देह मंहि, तेज पुंज सब ठांम ॥१४९॥
(२. पवन-पाँचों वायु)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि पंच इन्द्रियों से प्रवाहित पंच वायु पवित्र होकर हर क्षण स्मरण करे, मन से राम राम जितना हो सके रटें फिर इस ही देह के हर स्थान पर ईश्वर की दिव्यता दिखेगी । जैसे हम कहते हैं कि ललाट तेजोमय है, मुख पर तेज है इस प्रकार पूरी देह ही तेजोमय बतायी है।
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तेज पुंज निरवाण पद, त्रिकुटी आगे जांण ।
कहि जगजीवन नांउ रटि, रांम रिदा मंहि आंण ॥१५०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि तेज पुंज व निर्वाण पद की प्राप्ति ध्यान, जप व तप से मिलती है। ये तीन साधन हैं। संत कहते हैं कि नाम स्मरण कर हृदय में ईश्वर का ध्यान करें ।
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रांम रिदा मंहि आंणिये, राम रिदा मंहि राखि ।
कहि जगजीवन रांम मिली, रांम रिदै रस चाखि ॥१५१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम को हृदय में लाकर रखो अर्थात स्मरण बड़े आग्रह से प्रभु आह्वान कर करें। फिर राम से मिल कर रामानंद रस का स्वाद चखें।
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जे कुछ कहै तो रांम कहै, रांम चिंतवन३ चिंत ।
कहि जगजीवन रांम बिन, रांम उबारै अंत ॥१५२॥
(३. चिंतवन-चिन्तन)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि है जीव जब भी उच्चारण करे तो राम का करे, जब भी चित में कुछ आये तो राम ही आये, संत कहते हैं कि राम कहने से तो पार पाते हैं ही, जो नहीं कहते उन पर भी वे दयालु कृपा करते हैं।
(क्रमशः)

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