🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग सिन्दूरा १०(गायन समय रात्रि १२ से ३)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
२४६ - परिचय उपदेश । झपताल
हँस सरोवर तहां रमैं, सूभर हरि जल नीर ।
प्राणी आप पखालिये, निर्मल सदा होइ शरीर ॥टेक॥
मुक्ताहल मन मानिया, चुगैं हँस सुजान ।
मध्य निरँतर झूलिये, मधुर विमल रस पान ॥१॥
भ्रमर कमल रस वासना, रातो राम पीवँत ।
अरस परस आनँद करै, तहां मन सदा होइ जीवँत ॥२॥
मीन मगन माँही रहें, मुदित सरोवर माँहिं ।
सुख सागर क्रीड़ा करैं, पूरण परिमित नाँहिं ॥३॥
निर्भय तहं भय को नहीं, विलसैं बारँबार ।
दादू दर्शन कीजिये, सन्मुख सिरजनहार ॥४॥
२४६ - २४९ में ब्रह्म साक्षात्कारार्थ उपदेश कर रहे हैं -
जहां हृदय सरोवर में हरि स्वरूप जल परिपूर्ण रूप से भरा है, वहां ही सँत - हँस रमण करते हैं । उस नीर में जो प्राणी अपने अहँकारादि दोषों को धोता है उसका शरीर सदा के लिए निर्मल हो जाता है ।
.
बुद्धिमान् सँत - हँसों का मन ब्रह्म - स्वरूप मुक्ताहल के चिन्तन रूप चुगने में ही प्रसन्न हुआ है और अति मधुर, विमल दर्शन - रस पान करके उसी के आनँद में निरन्तर झू ता रहा है ।
.
जैसे भ्रमर कमल के वास - रस को पान करता है, वैसे ही सँत - मन राम में अनुरक्त होकर राम - दर्शन रस पान द्वारा अरस - परस आनँद लेते हुये सदा सजीवन होने जा रहा है ।
.
जैसे मच्छी सरोवर में निमग्न रह कर प्रसन्न रहती है, वैसे ही अपरिमित परिपूर्ण सुख सागर ब्रह्म में सँत क्रीड़ा करते हैं ।
.
वह ब्रह्म निर्भय स्थान है, वहां कोई भी प्रकार का भय नहीं है । सँत वहां ही प्रतिक्षण ब्रह्मानन्द का उपभोग करते हैं । तुम भी स्मरण द्वारा सृजनहार परमात्मा के सन्मुख होकर उनके दर्शन करो ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें