🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#पंडित०श्रीजगजीवनदासजी०की०अनभैवाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*५. परचा कौ अंग ~ ९७/१००*
.
चरण पलोटों पीव का, चरनाम्रित२ नित लेउँ ।
कहि जगजीवन पूजि हरि, प्रीति परिक्रमा देउँ ॥९७॥
(२. चरणाम्रित-चरणोदिक रूप अमृत का पान)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मैं भी करता हूँ परमात्मा प्रियतम के चरण दबा कर मैं तो नित्य चरणामृत ग्रहण करता हूँ यहां सेवा से प्रसन्न हो प्रभु कृपा ही चरणामृत है । उनकी पूजा करता हूँ । और प्रीति से अपने मन को उनके इर्दगिर्द ही रखता हूं मन का सारा निवेश परमात्मा में ही रहता है ।
.
करौं दण्डवत भाव सौं, तन मन सीस नवाइ ।
कहि जगजीवन सौंज सब, हरि मंहि सहजि समाइ ॥९८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि तन मन सब समर्पित भाव से झुकाकर जो प्रभु को प्रणाम करते है उन जन के ह्रदय आसन पर परमात्मा सदा निवास करते है ।
.
परम पुरिष परमेसवर, आदी इसवर रांम ।
कहि जगजीवन सेव हरि, स्वयं ब्रह्म सुख धांम ॥९९॥
संतजगजीवन जी कहते है कि जगत में सब आत्मा रुपी स्त्रियां है उनके परम पुरुष तो प्रभु आप ही है राम ही है । संत कहते हैं उनकी सेवा करने से तो वे स्वयं तुम्हें सुख देने के लिये ब्रह्म धाम में स्थान देंगें ।
.
कहि जगजीवन तेज के, तेज समांवै नाल३ ।
तेज पुंज मंहि राखि मन, हरि भजि रांम सम्भाल ॥१००॥
(३. नाल-साथ)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि तेज के संग तेज समाहित होता है अतः अपने मन को उस तेज पुंज में रखें व सिमरण कर प्रभुनाम को दृढता से जपते रहें ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें