गुरुवार, 18 जून 2020

*मैं यन्त्र हूँ, तुम यन्त्री*


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*दादू काल हमारे कंध चढ, सदा बजावै तूर ।* 
*कालहरण कर्त्ता पुरुष, क्यों न सँभाले शूर ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ काल का अंग)* 
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*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* 
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ 
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“यह सोना है और यह पीतल, ऐसे विचार को अज्ञान कहते हैं और सब कुछ सोना है, इसे ज्ञान । “ईश्वरदर्शन होने पर विचार बन्द हो जाता है । फिर ऐसा भी है कि कोई ईश्वरलाभ करके भी विचार करता हैं । कोई भक्ति लेकर रहता है, उनका गुणगान करता है ।
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“बच्चा तभी तक रोता है जब तक उसे माता का दूध पीने को नहीं मिलता । मिला कि रोना बन्द हो गया । तब आनन्दपूर्वक पीता रहता है । परन्तु एक बात है । कभी कभी वह दूध पीते पीते खेलता भी है और आनन्द से किलकारियां भरता है ।
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“वे ही सब कुछ हुए हैं । परन्तु मनुष्य में उनका प्रकाश अधिक है । जहाँ शुद्धसत्त्व बालकों का-सा स्वभाव है कि कभी हँसता है, कभी रोता है, कभी नाचता है, कभी गाता है, वहाँ वे प्रत्यक्ष भाव से रहते हैं ।”
श्रीरामकृष्ण अधर का कुशलसमाचार ले रहे हैं । अधर ने अपने मित्र के पुत्रशोक का हाल कहा । श्रीरामकृष्ण अपने ही भाव में गाने लगे-(भावार्थ)- “ ‘जीव ! समर के लिए तैयार हो जाओ । रण के वेश में काल तुम्हारे घर में घुस रहा है । भक्ति-रथ पर चढ़कर, ज्ञान-तूण लेकर रसना-धनुष में प्रेम गुण लगा, ब्रह्ममयी के नामरूपी ब्रह्मास्त्र का सन्धान करो । लड़ाई के लिए एक युक्ति और है । तुम्हें रथ-रथी की आवश्यकता न होगी यदि भागीरथी के तट पर तुम्हारी यह लड़ाई हो ।’ 
“क्या करोगे? इस काल के लिए तैयार हो जाओ । काल घर में घुस रहा है । उनका नामरूपी अस्त्र लेकर लड़ना होगा । कर्ता वे ही हैं । मैं कहता हूँ, ‘जैसा कराते हो, वैसा ही करता हूँ । जैसा कहाते हो, वैसा ही कहता हूँ । मैं यन्त्र हूँ, तुम यन्त्री; मैं घर हूँ, तुम घर के मालिक; मैं गाड़ी हूँ, तुम इंजीनियर ।’ 
“आममुख्तार उन्हीं को बनाओ । काम का भार अच्छे आदमी को देने से कभी अमंगल नहीं होता । उनकी जो इच्छा हो, करे । 
‘शोक भला क्यों नहीं होगा । आत्मज है न । रावण मरा तो लक्ष्मण दौड़े हुए गए, देखा, उसके हाड़ों में ऐसी जगह नहीं थी जहाँ छेद न रहे हो । लौटकर राम से बोले- भाई, तुम्हारे बाणों की बड़ी महिमा है, रावण की देह में ऐसी जगह नहीं है जहाँ छेद न हों ! राम बोले-हाड़ के भीतरवाले छेद हमारे बाणों के नहीं है, मारे शोक के उसके हाड़ जर्जर हो गए है । वे छेद शोक के ही चिन्ह हैं । 
“परन्तु है यह सब अनित्य । गृह, परिवार, सन्तान, सब दो दिन के लिए है । ताड़ का पेड़ ही सत्य है । दो एक फल गिर जाते हैं । इसके लिए दुःख क्यों ?
“ईश्वर तीन काम करते हैं, - सृष्टि, स्थिति और प्रलय । मृत्यु है ही । प्रलय के समय सब ध्वंस हो जाएगा, कुछ भी न रह जाएगा । माँ केवल सृष्टि के बीज बीनकर रख देंगी । फिर नयी सृष्टि होने के समय उन्हें निकालेंगी । घर की स्त्रियों के जैसे हण्डी रहती है जिसमें वे खीरे-कोहड़े के बीज, समुद्रफेन, नील जा डला आदि छोटी छोटी पोटलियों में बाँधकर रख देती हैं ।” (सब हँसते हैं ।)
(क्रमशः)

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