शनिवार, 6 जून 2020

= २९६ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷 
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग नट नारायण १८(गायन समय रात्रि ९ से १२)* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
२९६ - परमेश्वर महिमा । राज विद्याधर ताल
तुम बिन ऐसै कौन करे ।
गरीब निवाज गुसांई मेरो, माथैं मुकुट धरै ॥टेक॥
नीच ऊंच ले करै गुसांई, टार्यो हूं न टरै ।
हस्त कमल की छाया राखै, काहूं तैं न डरै ॥१॥
जाकी छोत जगत को लागै, तापर तूँ ही ढरै ।
अमर आप ले करै गुसांई, मार्यो हूं न मरै ॥२॥
नामदेव कबीर जुलाहो, जन रैदास तिरै ।
दादू वेगि बार नहिं लागै, हरि सौं सबै सरै ॥३॥
परमेश्वर की महिमा कह रहे हैं - दीन - हीन प्राणियों पर कृपा करने वाले हे मेरे स्वामिन् ! भक्तिवश अपवित्र अवस्था में भी आपने वेश्या के हाथ से अपने मस्तक पर मुकुट धारण किया था, आपके बिना ऐसे कौन कर सकता है ? (मुकुट धारण की कथा भक्तमाल में प्रसिद्ध है) । 
.
प्रभो ! आप नीच को उच्च कर लेते हैं, वह आपकी कृपा से प्राप्त उच्चस्थिति से हटाने से भी नहीं हटता, उच्च ही रहता है । उसे आप अपने कर - कमलों की रक्षा रूप छाया में रखते हैं, अत: वह किसी से भी नहीं डरता । 
.
जिसको जगत् में लोग अछूत समझते हैं, उस पर आप ही कृपा करते हैं । प्रभो ! उसे आप अपनी शरण में लेकर अमर कर लेते हैं, वह प्रहलाद के समान किसी के मारने से भी नहीं मरता । 
.
आपके भजन बल से नामदेव, जुलाहे कबीर और भक्त रैदास सँसार सिन्धु से तैर गये हैं । आप हरि की कृपा से कुछ भी देर न लग कर अति शीघ्र ही सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें