गुरुवार, 25 जून 2020

साँच का अंग १६५/१६८

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
(श्री दादूवाणी ~ १३. साँच का अंग)
.
*॥ सज्जन दुर्जन ॥*
*बिच के सिर खाली करैं, पूरे सुख सन्तोष ।*
*दादू सुध बुध आत्मा, ताहि न दीजे दोष ॥१६५॥*
जो ज्ञान को उपलब्ध ज्ञानी पुरुष हैं वे संतुष्ट रहते हुए परिपूर्ण ब्रह्म में लीन रहते हैं और वे तो ब्रह्मरूप हो चुके । किन्तु जो न तो अपने को ज्ञानी मानता है और न अज्ञानी किन्तु ज्ञान अज्ञान के बीच में लटका रहे हैं । अर्थात् जो किंचिज्ज्ञ हैं वे परस्पर में विवाद करते रहते हैं । उनका विवाद कल्याण का देने वाला नहीं है और भक्तों की आत्मा तो शुद्ध बुद्ध है अतः उनके मन में किसी प्रकार का विवाद उठता ही नहीं क्योंकि वे सदा भक्ति रस में लीन रहते हैं । अतः साधक को ज्ञाननिष्ठ रहना चाहिये न कि ज्ञानबन्धु ।
.
*शुध बुध सौं सुख पाइये, कै साधु विवेकी होइ ।*
*दादू ये  बिच के बुरे, दाधे रीगे सोइ ॥१६६॥*
शुद्ध आत्मा भक्तों के संग से आत्मसुख की उपलब्धि होती है । विवेकी पुरुषों के संग से विवेक जागृत हो जाता है । किन्तु जो किंचिज्ज्ञ हैं उनका संग नहीं करना चाहिये । क्योंकि वे स्वयं ही त्रितापों से जलते रहते हैं और संसार रूपी आग में जलते रहते हैं ।
.
*जनि कोई हरि नाम में, हमको हाना बाहि ।*
*ताथैं तुमथैं डरत हूँ, क्यों ही टलै बला हि ॥१६७॥*
मैं वितण्डावादियों से सदा डरता हूं क्योंकि वे हरिनाम चिन्तन में बाधक माने गये हैं और हरिनाम चिन्तन में मैं बाधा को ही महाविपत्ति समझता हूं । अतः उनसे मैं प्रार्थना करता हूं कि हे वितण्डावादियों आप लोग मेरे से दूर ही रहो क्योंकि मेरे हरिनाम चिन्तन में बाधा पड़ती है । लिखा है कि जो परोक्ष में कर्म की हानि करते हैं और सामने बड़ा ही प्रिय भाषण करते हैं । ऐसे पुरुषों को विष से भरे हुए घड़े के समान समझो । अर्थात् जिस घड़े में नीचे विषभरा पड़ा है और उपर मुख में दूध भरा हो ।
.
*॥ परमार्थी ॥*
*जे हम छाड़ैं राम को, तो कौन गहेगा ?*
*दादू हम नहिं उच्चरैं, तो कौन कहेगा ?।१६८॥*
अकबर की सभा में सीकरी नगर में अपने शिष्यों के सहित जाते हुए श्रीदादू जी महाराज को किसी शिष्य ने हितबुद्धि से कहा कि हे भगवन् ! अकबर की सभा में राम नाम का उपदेश हम सबके लिये अनर्थ पैदा कर सकता है अतः वहां पर राम का नाम नहीं लेना चाहिये । इसके प्रत्युत्तर में श्रीदादूजी महाराज ने कहा कि “जो हम छाडै राम को” अर्थात् राम भक्त ही यदि किसी के भय से राम नाम लेना छोड देंगे तो फिर दूसरा कौन राम के नाम का उच्चारण करेगा । यदि हम ही सच्चा उपदेश नहीं करेंगे तो फिर उसको सच्चा उपदेश कौन करेगा । मैं तो राम नाम का प्रभाव जानता हूं । अतः यमराज का भी मुझे भय नहीं है फिर यह विचारा अकबर तो हमारा क्या बिगाड़ सकता है? मैं वहां जाकर सच्चा उपदेश करूंगा, क्योंकि मुझे किसी का भी भय नहीं है । 
लिखा है कि- नीतिनिपुण पण्डित पुरुष चाहे निन्दा करें या स्तुति करें, लक्ष्मी चाहे जाये या रहे । चाहे आज ही मृत्यु आ जाय या दिनान्तर में हो । परन्तु धीर पुरुष न्याय का रास्ता नहीं छोड़ते ।
हे राजन् ! प्रिय बात कहने वाले पुरुष आपको बहुत सुलभ हो सकते हैं । लेकिन अप्रिय बात, जो हितकारक है उसको कहने वाले तथा सुनने वाले थोड़े ही होते हैं ।
जो मनुष्यों के लिये सुनने में यद्यपि अप्रिय बात है लेकिन उससे हमारा हित हो तो उसके कहने वाले ही सच्चे मित्र हैं । बाकी तो अन्य मित्र का नाम ही धारण करते हैं, मित्र नहीं हैं वे ।  
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें