🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#पंडित०श्रीजगजीवनदासजी०की०अनभैवाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*५. परचा कौ अंग ~ १०१/१०४*
.
तेज पुंज की आरती, नम४ कर कीजै भाइ ।
कहि जगजीवन जोति मंहि, ज्योतिहि ज्योति समाइ ॥१०१॥
(४. नम-विनीत भाव से झुक कर)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु के तेज की आरती वन्दन नम्रता से करें इसी प्रकाश पुंज में प्रकाश स्वरूप प्रभु विराजते हैं ।
.
कहि जगजीवन तेज की, वांणी उतपति होइ ।
तेज पुंज मंहि आतमा, जीव ब्रह्म तहँ जोइ ॥१०२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रकाश पुंज की वाणी भी ध्वनित होती है । वह तेज पुंज, आत्मा युक्त है वहां जीव व ब्रह्म दोनों ही रहते हैं ।
.
उत्तम दीपक रतन हरि, परम ज्योति प्रकास ।
पावक दीपक प्रक्रिति गुण५, सु कहि जगजीवनदास ॥१०३॥
(५. पावक दीपक प्रक्रिति गुण-अग्नि एवं दीपक-दोनों का ही प्रकाश करना स्वाभाविक गुण है ।)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि दीपक उत्तम है जिसमें प्रभु नाम का रत्न चमकता है जिससे परम ज्योतिर्मय प्रकाश निकलता है अग्नि व दीपक दोनों की प्रकृति प्रकाशित करता है । ऐसा संत कहते हैं ।
.
ना मोहि बांछा६ सुरग की, नहीं मुकति की आस ।
जोग सिद्धि बांछां नहीं, फुनिग लोक७ नहिं बास ॥१०४॥
{(६. बांछां-इच्छा, चाह(=मनः कामना)} {(७. फुनिग लोक-नागलोक(पाताल लोक) जहाँ विष्णु भगवान् शयन करते हैं ।}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु ना तो मैं स्वर्ग की कामना करता हूँ । ना ही मुक्ति की आशा है, ना योग सिद्धि वाछिंत है, ना ही ये पाताल लोक चाहिए, जहाँ विष्णु भगवान का शयन हो ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें