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*#श्रीदादू०अनुभव०वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग गुँड(गौंड) २०(गायन समय वर्षा ॠतु में सब समय, संगीत - प्रकाश के मतानुसार)*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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३२६ - **परिचय प्राप्ति** । खेमटा ताल
मेरा मन के मन सौं मन लागा,
शब्द के शब्द सौं नाद बागा१ ॥टेक॥
श्रवण के श्रवण सुन सुख पाया,
नैन के नैन सौं निरख राया ॥१॥
प्राण के प्राण सौं खेल प्राणी,
मुख के मुख सौं बोल वाणी ॥२॥
जीव के जीव सौं रँग राता,
चित्त के चित्त सौं प्रेम माता ॥३॥
शीश के शीश सौं शीश मेरा,
देखिरे दादू वो भाग तेरा ॥४॥
प्रत्यक्ष ब्रह्म प्राप्ति का परिचय दे रहे हैं, मन के भी मन ब्रह्म से ही मेरा मन लगा है । शब्द के भी शब्द ब्रह्म से ही मेरा वाणी रूप नाद लगा१ है अर्थात् ब्रह्म सम्बन्धी ही वाणी निकलती है ।
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श्रवण के भी श्रवण ब्रह्म को ही सुन कर सुख प्राप्त किया है । नेत्रों के भी नेत्र ब्रह्म रूप से विश्व को देखकर मैं सबको रँजन करने वाला हुआ हूं ।
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हे प्राणी ! प्राणों के भी प्राण ब्रह्म से ही मिल कर आनन्द ले । मुख के भी मुख ब्रह्म सँबँधी वाणी बोल ।
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मैं तो जीव के भी जीव ब्रह्म के सत्य चेतनादि रूप रँग में अनुरक्त हूं । चित्त के भी चित्त ब्रह्म से प्रेम करके मस्त हूं ।
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शिर के भी शिर ब्रह्म को शिर नमाने से ही मेरा शिर शोभा युक्त हुआ है । देखो! मेरा कितना उत्तम भाग्य है, जो ब्रह्म के साथ साक्षात् परिचय प्राप्त हुआ है ।
(क्रमशः)
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