मंगलवार, 25 अगस्त 2020

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷

🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*दादू निन्दा किये नरक है, कीट पड़ैं मुख मांहि ।*
*राम विमुख जामै मरै, भग-मुख आवै जाहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निन्दा का अंग)*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु*, *निन्दा*
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साँभर में कुछ लोग सन्त दादूजी की निन्दा किया करते थे । एक समय सहसा उन सब के शरीर में भयंकर जलन हुई । औषधियों से कुछ लाभ न हुआ । तब सबने सोचा कि - "हम सबको एक ही रोग क्यों और सबको ही दवा से लाभ क्यों नहीं होता ?" अन्त में एक सज्जन ने कहा - "तुम सब संत दादूजी की निन्दा करते हो । सम्भव है, उसी से तुम सब को जलन हुई हो । यह अन्य उपचारों से दूर न होकर उनकी शरण जाने से ही दूर होगी ।" फिर सबने दादूजी की शरण जाकर क्षमा माँगते हुए जलन निवृति की प्रार्थना की । परम दयालु दादूजी ने उन सब के शरीरों पर अपने कमंडलु का जल छिड़क दिया जिससे तत्काल सब की जलन मिट गई ।
संतन की निन्दा किये, दुख हो संशय नांहिं ।
दादू निन्दक जनों के, जलन भई तन माँहिं ॥२१३॥

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