मंगलवार, 25 अगस्त 2020

‘तागी’ और ‘त्यागी’

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*गुरुमुख पाइये रे, ऐसा ज्ञान विचार ।* 
*समझ समझ समझ्या नहीं, लागा रंग अपार ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ७६)* 
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*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)* 
*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ* 
मणि- ग्रीस देश में सुकरात नाम का एक आदमी था । यह दैववानी हुई थी कि सब लोगों में वही ज्ञानी है । उसे आश्चर्य हुआ । बहुत देर तक निर्जन में चिन्ता करने पर उसे भेद मालुम हुआ । तब उसने अपने मित्रों से कहा, ‘केवल मुझे ही मालुम हुआ है कि मैं कुछ नहीं जानता; पर दूसरे सब लोग कहते हैं कि हमें खूब ज्ञान हुआ है । परन्तु वास्तव में सभी अज्ञान हैं ।’ 
श्रीरामकृष्ण- मैं कभी कभी सोचता हूँ कि मैं जानता ही क्या हूँ कि इतने लोग यहाँ आते हैं ! वैष्णवचरण बड़ा पण्डित था । वह कहता था कि तुम जो कुछ कहते हो वह सब शास्त्रों में पाया जाता है । तो फिर तुम्हारे पास क्यों आता हूँ ? तुम्हारे मुँह से वही सब सुनने के लिए । 
मणि- आपकी सब बातें शास्त्र से मिलती हैं । नवद्वीप गोस्वामी भी उस दिन पानीहाटी में यही बात कहते थे । आपने कहा कि ‘गीता’ ‘गीता’ बार बार कहने से ‘त्यागी’ ‘त्यागी’ हो जाता है । वास्तव में ‘तागी’ होता है, परन्तु नवद्वीप गोस्वामी ने कहा कि ‘तागी’ और ‘त्यागी’ दोनों का एक ही अर्थ है; ‘तग्’ एक धातु है, उसी से ‘तागी’ बनता है । 
श्रीरामकृष्ण- मेरे साथ क्या दूसरों का कुछ मिलता-जुलता है ? किसी पण्डित या साधु का ? 
मणि- आपको ईश्वर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया है । और दूसरों को मशीन में डालकर । -जैसे नियम के अनुसार सृष्टि होती है । 
श्रीरामकृष्ण(सहास्य, रामलाल आदि से)- अरे, कहता क्या है ! 
श्रीरामकृष्ण की हँसी रूकती ही नहीं । अन्त में उन्होंने कहा, “शपथ खाता हूँ, मुझे तनिक भी अभिमान नहीं होता ।” 
मणि- विद्या से एक लाभ होता है । उससे यह मालुम हो जाता है कि मैं कुछ नहीं जानता, और मैं कुछ नहीं हूँ । 
श्रीरामकृष्ण- ठीक है, ठीक है । मैं कुछ नहीं हूँ मैं कुछ नहीं हूँ ! अच्छा, अंग्रेजी ज्योतिष पर तुम्हें विश्वास है ? 
मणि- उन लोगों के नियम के अनुसार नये अविष्कार हो सकते हैं; युरेनस(Uranus) ग्रह की अनियमित चाल देखकर उन्होंने दूरबीन से पता लगाकर देखा कि एक नया ग्रह(Neptune) चमक रहा है । फिर उससे ग्रहण की गणना भी हो सकती है । 
श्रीरामकृष्ण- हाँ, सो तो होती है । 
गाड़ी चल रही है – प्रायः अधर के मकान के पास आ गयी है । श्रीरामकृष्ण मणि से कहते हैं, “सत्य में रहना, तभी ईश्वर मिलेंगे ।” 
मणि-एक और बात आपने नवद्वीप गोस्वामी से कही थी – ‘हे ईश्वर, मैं तुम्हीं को चाहता हूँ । देखना, भुवनमोहिनी माया के ऐश्वर्य से मुझे मुग्ध न करना । मैं तुम्हीं को चाहता हूँ ।’ 
श्रीरामकृष्ण- हाँ, यह दिल से कहना होगा । 
(क्रमशः)

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