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*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*अबिहड़ का अंग ३७*
"दादू अमर फल खाइ" - इस सूत्र के व्याख्यान स्वरूप बेली के अंग के तदनन्तर, अब अबिहड़ का अंग निरूपण करते हैं ।
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*मंगलाचरण*
*दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।*
*वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥१॥*
टीका - अब हरि, गुरु, संतों को नमो, नमस्कार, वन्दना प्रणाम आदि करके ‘अबिहड़’ कहिये, न बदलने वाले स्वरूप निरंजनदेव, अर्थात् उस एक अद्वैत अविनाशी ब्रह्मतत्व का विचार करने के लिए अज्ञान से पार होकर, नित्य संयोग को समझ कर, ब्रह्म में अभेद होते हैं ॥१॥
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*दादू संगी सोई कीजिये, जे कलि अजरावर होइ ।*
*ना वह मरै, न बीछूटै, ना दुख व्यापै कोइ ॥२॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! उसी को अब साथी बनाइये, जो इस कलि संसार में, अजर अमर स्वरूप है, वह न तो मरता है और न बिछुड़ता है । न उसको किसी प्रकार का दुख व्याप्त होता है ॥२॥
आदि मध्य अरु अंत लौं, हरि है सदा अभंग ।
कबीर उस कर्तार का, सेवक तजै न संग ॥
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*दादू संगी सोई कीजिये, जे थिर इहि संसार ।*
*ना वह खिरै, न हम खपैं, ऐसा लेहु विचार ॥३॥*
टीका - हे जिज्ञासु ! उस अविनाशी आत्म - स्वरूप परमात्मा को अपना संगी बनाइये, जो इस संसार में सदैव स्थिर रहता है । न तो वह कभी खिरता है और उसका संग करके, न हम मुक्त पुरुष, उसमें अभेद होकर नष्ट ही होते हैं । ऐसे अविनाशी स्वरूप का विचार करके, हे मुमुक्षुओ ! उसी के साथ अपनी वृत्ति को लगाओ ॥३॥
(क्रमशः)
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