#daduji
||दादूराम सत्यराम||
दादू बहु गुणवंती बेलि है, ऊगी कालर मांहिं ।
सींचै खारे नीर सौं, तातैं निपजै नांहिं ॥ ११ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! बुद्धि रूपी बेली बहुत गुणवान है, परन्तु विषय - वासना रूप कालर भूमि में स्थिर हो रही है और इन्द्रियों के विषय रूपी खारे नीर को पीकर क्षीण होती जाती है । वह बुद्धि ब्रह्म अनुसरणी नहीं बनती, इसीलिये अमर फल से वंचित रहती है ॥ ११ ॥
बहु गुणवंती बेली है, मीठी धरती बाहि ।
मीठा पानी सींचिये, दादू अमर फल खाहि ॥ १२ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! मनुष्य की बुद्धिरूपी बेली बहुत गुणवान है । इसको सत्संग रूपी मीठी धरती में लगाइये और फिर निष्काम नाम - स्मरण रूपी मीठे जल से सींचिये । फिर उस बुद्धि रूप बेली का ज्ञान अमृत रूपी फल खाकर साधक जीवन मुक्त हो जाता है ॥ १२ ॥
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