रविवार, 22 नवंबर 2020

*देह को त्यागकर मनुष्य कहाँ जाता है ?*

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*किहिं मारग ह्वै आइया, किहिं मारग ह्वै जाइ ।*
*दादू कोई ना लहै, केते करैं उपाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद ५९*
*केशव सेन के मकान पर*
(१)
*कमल-कुटीर के सामने – पश्यति तव पन्थानम्*
कार्तिक की कृष्णा चतुर्दशी, २८ नवम्बर १८८३, दिन बुधवार है । आज एक भक्त कमल-कुटीर(Lily Cottage) के पूर्ववाले रास्ते पर टहल रहे हैं; जैसे व्याकुल हो किसी की प्रतीक्षा कर रहे हों । कमल-कुटीर के उत्तर की तरफ मंगलबाड़ी है । वहाँ बहुत से ब्राह्मभक्त रहते हैं । कमल-कुटीर में केशव रहते हैं । उनकी पीड़ा बढ़ गयी है । कितने ही लोग कहते हैं, अब की बार शायद वे न बचेंगे ।
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श्रीरामकृष्ण केशव को बहुत प्यार करते हैं, आज इन्हें देखने के लिए आनेवाले हैं । वे दक्षिणेश्वर कालीमन्दिर से आ रहे हैं । इसीलिए भक्तलोग उनकी बाट जोह रहे हैं ।
कमल-कुटीर सर्क्यूलर रोड के पश्चिम ओर है । इसीलिए भक्त महोदय रास्ते में ही टहल रहे हैं । वे दो बजे दिन से प्रतीक्षा कर रहे हैं । कितने ही लोग जाते हैं, वे उन्हें देख भर लेते हैं ।
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रास्ते के पूर्व ओर विक्टोरिया कालेज है । यहाँ केशव के समाज की बहुत सी ब्राह्म महिलाएँ और उनकी कन्याएँ पढ़ती हैं । रास्ते से कालेज का बहुत सा भाग दिखायी पड़ता है । कालेज के उत्तर की ओर एक बड़ा उद्यानगृह है, उसमें कोई अंग्रेज सज्जन रहता हैं । भक्त महोदय बड़ी देर से देख रहे है कि उनके यहाँ कोई विपत्ति आयी हैं । थोड़ी देर बाद काले कपड़े पहने कोचवान मृतदेह ले जानेवाली गाड़ी ले आए । करीब डेढ़-दो घण्टों से यह सब तैयारी चल रही है ।
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यह मर्त्यधर्म छोड़कर कोई चला गया है इसीलिए यह तैयारी हो रही थी । भक्त सोच रहे हैं – कहाँ ? देह को त्यागकर मनुष्य कहाँ जाता है ?
उत्तर से दक्षिण की और कितनी ही गाड़ियाँ आ रही हैं । भक्त एक एक बार देख रहे हैं – वे आ रहे हैं या नहीं ।
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शाम हो आयी, पाँच बज गए । इसी समय श्रीरामकृष्ण की गाड़ी भी आ पहुँची । साथ लाटू तथा दो-एक भक्त और भी हैं । राखाल भी आये हैं ।
केशव के घर के आदमी आकर श्रीरामकृष्ण को अपने साथ ऊपर ले गए । बैठकखाने के दक्षिण ओर वाले बरामदे में एक पलंग रखा हुआ था । उसी पर श्रीरामकृष्ण को उन्होंने बैठाया ।
(क्रमशः)

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