रविवार, 22 नवंबर 2020

= १८९ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*दादू दीया है भला, दीया करौ सब कोइ ।*
*घर में धर्या न पाइये, जे कर दीया न होइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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कच्छ देश के भद्रेश्वर गांव के सेठ सोलक और लक्ष्मीबाई के जगडू, राज और पदम ये तीन पुत्र थे । पिता के मर जाने पर जगडू ने अपने हाथ में सब काम ले लिया । 
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जगडू बडे उदार थे, उनके यहां से कोई भी अर्थी निरास नहीं होता था । धीरे धीरे धन घटने लगा, जगडू को चिंता होने लगी कि कही ऐसा समय न आ जाय तो मेरे यहां कोई अर्थी खाली हाथ चला जाय । 
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उसके भाग्य ने जोर पकड़ा, एक दिन गांव के एक बकरियों के झुण्ड में एक बकरी के गले में एक बहुमुल्य मणि बंधी देखी और बकरियों वाले को धन से राजी करके मणि के सहित वह बकरी खरीद ली । उस मणि के द्वारा उसका धन बहुत बढ गया । देखो दान के प्रभाव से अकस्मात मणि मिल गई और पुन: महाधनी हो गया ।
दानी का धन घटत भी, अकस्मात बढ जाय ।
जगडू का अतिशय बढा, बकरी मणि को पाय ॥१०१॥

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