बुधवार, 20 जनवरी 2021

*ब्रह्मर्षि*(१)

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*घट घट के उनहार सब, प्राण परस ह्वै जाइ ।*
*दादू एक अनेक ह्वै, बरतें नाना भाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*ब्रह्मर्षि*
*छप्पय-भृगु मरीचि वसिष्ठ,*
*पुलस्त्य पुलह क्रतु अंगिरा।*
*अगस्त्य च्यवन शौनक,*
*सहस अठ्यासी सगरा ॥*
*गौतम गर्ग सौभरि,*
*ऋचीक श्रृंगी शमीक गुर ।*
*वकदाल्भ्य जमदग्नि,*
*जाबालि पर्वत रु पराशर ॥*
*विश्वामित्र माण्डव्य कण्व,*
*वामदेव शुक व्यास पिख ।*
*दुर्वासा अत्रि असित,*
*देवल राघो ब्रह्म रिख ॥६५॥*
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*१. भृगु-* महर्षि भृगु ब्रह्माजी के द्वारा वरुण के यज्ञ में अग्नि से उत्पन्न हुये थे । इनकी पत्नी का नाम पुलोमा था । पुलोमा राक्षस के हरण करते समय इनकी पत्नी पुलोमा का गर्भ चू पड़ा था, जिससे च्यवन नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई थी । नारद जी के उपदेश से ये भगवद् भक्त हुए थे । ये सभी विद्याओं के आचार्य हैं । इन्होंने ही परीक्षा के निमित्त विष्णु जी की छाती में लात मारी थी, जिससे भगवान् का अपार यश हुआ है । प्रभु ने इनको त्रिकालदर्शी होने का आशीर्वाद दिया था तथा गीता में ‘महर्षियों में मैं भृगु हूँ ।ऐसा कह कर इनको अपना रूप ही बताया है ।
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*२. मरीचि-* महर्षि मरीचि ब्रह्मा के मानस पुत्र और कश्यप के पिता हैं ब्रह्मा के मानस पुत्रों में भी आप प्रथम पुत्र हैं । अग्नि की मरीचियों(किरणों) से मरीचि का प्रादुर्भाव हुआ था । इन्हें अंगिरा से दंड नीति की प्राप्ति हुई थी और इन्होंने उसे भृगु को दिया था । इन्हें विष्णु ने खंग दिया था और इन्होंने उसे अन्य महर्षियों को दिया था । चित्रशिखंडी कहें जाने वाले ऋषियों में भी इनकी गणना है । ये आठ प्रकृति में भी गिने जाते हैं ।
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*३. वसिष्ठ-* महर्षि वसिष्ठ ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं । अरुधन्ती देवी के पति हैं । शक्ति आदि सौ पुत्रों के पिता हैं । भगवान् रामजी के आप गुरु हैं । देवदुर्जय काम और क्रोध नामक दोनों शत्रु इनकी तपस्या से हार कर इनके अधीन हो गये थे । इन्द्रियों को वश में कर लेने के कारण ये ‘वसिष्ठ’ कहलाते हैं । राजा संवरण की प्रार्थना से आप उसके पुरोहित बने और पुरुवंशी संवरण को समस्त क्षत्रियों के सम्राट पद पर अभिषिक्त कर दिया था । इन्हीं को पुरोहित रूप में प्राप्त करके इक्ष्वाकुवंशी नरेशों ने इस पृथ्वी पर अधिकार प्राप्त किया था । इनकी कथाएं इतिहास पुराणों में बहुत प्राप्त होती हैं ।
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*४. पुलस्त्य-* महर्षि पुलस्त्य ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं । बुद्धिमान् पुलस्त्य मुनि के पुत्र राक्षस, वानर, किन्नर और यक्ष हैं । इन्होंने अपने आधे शरीर से विश्रवा नामक पुत्र उत्पन्न किया था । इक्कीस प्रजापतियों में इनका भी नाम है । पराशर जी ने राक्षस-सत्र में महर्षियों के साथ आप आये थे और पराशर जी को समझा कर उस सत्र(यज्ञ) को बन्द करने के लिये कह कर बंद करवाया था । चित्रशिखंडी नाम वाले सप्त ऋषियों में भी आप हैं । इन्होंने अपने पुत्रों को विद्या पढ़ा कर मोक्ष प्राप्ति का साधन करते हुए प्रभु को प्राप्त किया था ।
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*५. पुलह-* महर्षि पुलह ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं । इक्कीस प्रजापतियों में एक ये भी हैं । इन्होंने ब्रह्माजी की आज्ञा से दक्ष प्रजापति और महर्षि कर्दम की कन्याओं को पत्नी रूप में ग्रहण करके सृष्टि की वृद्धि की थी । किम्पुरुषादि इनकी संतानें हैं । इन्होंने महर्षि सनन्दन से तत्वज्ञान प्राप्त किया था और उसे गौतम ऋषि को प्रदान किया था । ये शिवजी के बड़े भक्त थे । अलकनन्दा के तट पर जप और स्वाध्याय करते थे ।
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*६. क्रतु-* महर्षि क्रतु ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं । इक्कीस प्रजापतियों में और चित्रशिखण्डी ऋषियों में भी इनकी गणना है । शिव भक्ति द्वारा इन्हें सहस्त्र पुत्रों की प्राप्ति हुई थी । ये महा योगेश्वर माने गये हैं । इन्होंने अपने पिता ब्रह्मा की आज्ञा से कर्दम प्रजापति की पत्नी देवहूति के गर्भ से उत्पन्न हुई क्रिया और दक्ष प्रजापति की सन्नति नाम की कन्या को पत्नी रूप में स्वीकार किया था । उसके द्वारा साठ हजार बाल खिल्य नामक पुत्र हुये थे । महर्षि क्रतु ही वाराह कल्प में वेदों के विभाजक, पुराणों के प्रदर्शक और ज्ञानोपदेष्टा व्यास हुये थे । कहीं-कहीं ब्रह्माजी के बायें नेत्र से इनकी उत्पत्ति कही गई है ।
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*७. अंगिरा-* महर्षि अंगिरा ब्रह्माजी के छः मानस पुत्रों में से हैं । इनकी उत्पत्ति ब्रह्माजी के वीर्य और अंगार से हुई है । इनके वृहस्पति, उतथ्य और संवर्त ये तीन पुत्र हैं । इन्होंने राजा अविक्षित् का यज्ञ कराया था । नारदजी के उपदेश से आप भगवद् भक्ति में संलग्न हुये थे । इनकी तपस्या से इनका प्रभाव अग्नि से भी अधिक बढ गया था ।
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*८. अगस्त्य-* महर्षि अगस्त्य मित्रावरुण के पुत्र हैं । वरुण देवता तथा मित्र जी दोनों ने अपने तेज एक कलश में धर रक्खे थे । ब्रह्मा की इच्छा से उसी कलश से आप निकले थे, इसी से आपका एक नाम कुम्भज भी हैं । आपने ही अग्निवेश को धनुर्वेद की शिक्षा दी थी । इनकी पत्नी विदर्भ राजकुमारी लोपामुद्रा थी । बढते हुये विंध्याचल को आपने ही रोका था । इन्होंने ही ऋषि भक्षक वातापि को नष्ट किया था । इन्होंने ही समुद्र का शोषण किया था । इनके शाप से ही नहुष का पतन हुआ था । इनके क्रोध से दग्ध होकर दानव अन्तरिक्ष से गिरे थे । इनने द्वादश वार्षिक यज्ञ का अनुष्ठान किया था और उसमें अपने तप का महान् प्रभाव भी दिखाया था । आपकी रचित ‘अगस्त्य संहिता’ प्रसिद्ध है । राजा श्वेत को शव खाने से आपने ही बचाया था । राम उपासना पद्धति के आचार्य आप ही हैं ।
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*९. च्यवन-* ब्रह्मर्षि च्यवन महर्षि भृगु के पुत्र हैं । माता का गर्भ राक्षस के भय से गिर जाने से इनका नाम च्यवन पड़ा है । इनको देखते ही राक्षस भस्म हो गया था । इनसे आस्तीक ने अंगों सहित सम्पूर्ण वेदों का अध्ययन किया था । इनकी भार्या मनु की पुत्री आरुषी थी । उसी से और्व मुनि का जन्म हुआ था । सुकन्या से इनके नेत्र फूट जाने पर राजा शर्याति के सैनिकों को मलावरोध हो गया था । इससे शर्याति ने सुकन्या इन्हीं को दे दी थी । इनके द्वारा सुकन्या से प्रमति का जन्म हुआ था । इनने अश्विनीकुमारों को सोमपान कराया था ।
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*१०. शौनक-* ब्रह्मर्षि शौनकजी शुनक के पुत्र थे । भृगुवंशी होने से इनको भार्गव भी कहते हैं । ये नैमिषारण्य के अठासी हजार ऊर्ध्वरेता ब्रह्मवादी ऋषियों में प्रधान थे । सम्पूर्ण अठासी हजार ऋषियों के साथ इन्होंने सूतजी  के मुख से समस्त पुराण और महाभारत सुना था । ये सभी ब्रह्मर्षि थे । इन ने नैमिषारण्य में द्वादश वार्षिक यज्ञ किया था ।
(क्रमशः)  
 

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