मंगलवार, 5 जनवरी 2021

*सब कुछ चिन्मय है*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू देखु दयालु को, सनमुख सांई सार ।*
*जीधरि देखौं नैंन भरि, तीधरि सिरजनहार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
================
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
आज कृष्णपक्ष की द्वितीया है । सन्ध्या के कुछ समय बाद चन्द्रोदय हुआ । वह चाँदनी, मन्दिरशीर्ष, चारों ओर के पेड़-पौधे और मन्दिर के पश्चिम ओर भागीरथी के वक्षःस्थल पर पड़कर अपूर्व शोभा धारण कर रही है । इस समय उसी पूर्वपरिचित कमरे में श्रीरामकृष्ण बठे हुए हैं । फर्श पर मणि बैठे हुए हैं । शाम होते होते वेदान्त के सम्बन्ध की जो बात मणि ने उठायी थी उसी के बारे में श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं ।
.
श्रीरामकृष्ण(मणि से) – संसार मिथ्या क्यों होने लगा ? यह सब विचार की बात है । उनके दर्शन हो जाने पर ही समझ में आता है कि जीव-प्रपंच सब वही हुए हैं ।
“मुझे माँ ने कालीमन्दिर में दिखलाया कि माँ ही सब कुछ हुई हैं । दिखाया, सब चिन्मय है । प्रतिमा चिन्मय है ! वेदी चिन्मय है ! अर्ध्यपात्र चिन्मय है ! चौखट, संगमर्मर पत्थर – सब कुछ चिन्मय है !
.
“मन्दिर के भीतर मैंने देखा, सब मानो रस से सराबोर हैं – सच्चिदानन्द-रस से । 
“कालीमन्दिर के सामने एक दुष्ट आदमी को देखा – परन्तु उसके भीतर भी उनकी शक्ति जाज्वल्यमान देखी !
“इसीलिए तो मैंने बिल्ली को उनके भोग की पूड़ियाँ खिलायी थीं । देखा, माँ ही सब कुछ हुई हैं । - बिल्ली भी । तब खजांची ने मथुरबाबू को लिखा कि भट्टाचार्य महाशय भोग की पूड़ियाँ बिल्लियों को खिलाते हैं । मथुरबाबू मेरी अवस्था समझते थे । चिट्ठी के उत्तर में उन्होंने लिखा, ‘वे जो कुछ करें, उसमें कुछ बाधा न देना ।’
“उन्हें पा जाने पर यह सब ठीक ठीक दीख पड़ता है; वही जीव, जगत्, चौबीसों तत्त्व – यह सब हुए हैं ।
“परन्तु, यदि वे ‘मैं’ को बिलकुल मिटा दें, तब क्या होता है, यह मुँह से नहीं कहा जा सकता । जैसे रामप्रसाद ने कहा है – ‘तब तुम अच्छी हो या मैं अच्छा हूँ यह तुम्हीं समझोगी ।’
“वह अवस्था भी मुझे कभी कभी होती है ।
“विचार करने से एक तरह का दर्शन होता है और जब वे दिखा देते हैं तब एक दूसरे तरह का ।” 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें