गुरुवार, 21 जनवरी 2021

*१२. चितावणी कौ अंग ~ ३३/३६*


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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*१२. चितावणी कौ अंग ~ ३३/३६*
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थिति बिन गति बिन ग्यांन बिन, गुण बिन गुण किहिं कांम ।
कहि जगजीवन नाऊँ बिन, नांव८ न मानै रांम ॥३३॥
{८. नांव=नाम(प्रसिद्धि)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि स्थिति के बिना ज्ञान के बिना गुण किस काम के हैं । जब तक नाम स्मरण में चित ना हो तो सारे संसार में भी नाम किस काम के हैं ।
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कहि जगजीवन विप्र गलि९, तीन तार को ताग१० ।
ब्रह्मा बिष्णु महेस मुनि, रांम कहैं सिरि भाग ॥३४॥
(९. गलि=कण्ठ में) {१०. ताग=सूत(यज्ञोपवीत)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि ब्राह्मण जन तीन तार का जनेउ गले में धारण करते हैं । वे इसे ही ब्रह्मा विष्णु महेश का प्रतीक मान कर शिरोर्धार्य करते हैं ।
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विधि निषेध११ सुभ असुभ की, जब लग मन मांहि संक१२ ।
कहि जगजीवन रांम सरि, पहुप१३ निकट ग्रह पंक१४ ॥३५॥
(११. विधि-निषेध=कृत्य एवं अकृत्य कर्म) (१२. संक=शंका)
(१३. पहुप=कमल का फूल) (१४. पंक=कीचड़)
संतजगजीवन जी कहते हैं जब तक मन में शंका होती है तभी तक जीव कृत्य व अकृत्य कर्म करता है व शुभ अशुभ विचारता है । जब परमात्मा अनुकूल होते हैं तो कीचड़ में भी कमल खिल जाता है ।
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कहि जगजीवन नांम बिन, सकल स्यांनि बहि जाइ ।
हरि हरि वाणी रांम लहै, रांम भगति रस पाइ ॥३६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु के नाम स्मरण बिना सारा सयानापन बह जाता है प्रभु स्मरण से ही राम भक्ति मिलती है ।
(क्रमशः)

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