गुरुवार, 21 जनवरी 2021

*ब्रह्मर्षि*(२)

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*जब पूरण ब्रह्म विचारिये, तब सकल आत्मा एक ।*
*काया के गुण देखिये, तो नाना वरण अनेक ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साँच का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,* 
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान* 
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*११. गौतम-* ब्रह्मर्षि गौतम के सम्बन्ध में पुराणों में कथा मिलती है- महर्षि अन्धतमा जन्म से ही अन्धे थे । उनपर स्वर्ग की कामधेनु प्रसन्न हो गई और उस गौ ने इनका तम हर लिया । ये देखने लगे । तब इनका नाम गौतम हो गया । इनकी पहली पत्नी अहल्या थी । ब्रह्माजी ने सबसे सौंदर्य लेकर अहल्या रची थी । हल पाप को कहते हैं, हल भाव हल्य और जिसमें पाप न हो उसका नाम अहल्या है । इस कारण उस निष्पापा का नाम अहल्या रक्खा था । 
गौतम ने पारिपात्र पर्वत पर अपने आश्रम में साठ हजार वर्षों तक तप किया था । इनकी तपस्या को देखकर ब्रह्मा ने अहल्या को तपस्वी गौतमजी के पास धरोहर रूप में रक्खा था । हजारों वर्ष के बाद गौतम स्वयं ही अहल्या को लेकर ब्रह्माजी के पास गये और बोले- यह आपकी धरोहर लें । ब्रह्मा ने इनका संयम देखकर अहल्या का विवाह इनके साथ ही कर दिया । इनके शतानन्द और चिरकारी दो पुत्र थे । इनके शिष्यों में उत्तंक पर इनका अधिक प्रेम था ।
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*१२. गर्ग-* ब्रह्मर्षि गर्ग प्राचीन ऋषि हैं । महाराज पृथु के दरबार में आप ज्योतिषी थे । गन्धर्व राज विश्वावसु को वेद्य तत्व की नित्यता का उपदेश दिया था । शिव महिमा के विषय में युधिष्ठिर को आपने अपना अनुभव बताया था । गर्गजी ने महान् तप किया था । बहुतों को विद्या पढ़ाई थी । आप यदु वंश के पुरोहित थे । गर्ग संहिता में भगवान् कृष्ण का चरित्र आपने सुन्दर ढंग से लिखा है ।
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*१३. सौभरि-* दया मूर्ति सौभरि ऋगवेद के ऋषि हैं । इनके चरित्र वेदों, पुराणों और उपनिषदों में मिलते हैं । ‘सौभरि संहिता’ नाम से एक संहिता भी है । ये वृन्दावन के पास कालिन्दी के तट पर रमणक नामक द्वीप में रहते थे, जो आजकल सुनरख नाम से प्रसिद्ध है । ये यमुना जल में डूबकर हजारों वर्षों तक तप करते रहे थे । आप के पास मछलियाँ मारने से आपने गरुड़ को शाप दिया था- यदि अब से आगे यहाँ आकर किसी जीव को मारोगे तो तुम भी मर जाओगे । इसी से वहां आकर कालियनाग रहने लगा था । 
मत्स्य संग को देखकर आपको नारी संग की इच्छा हुई तब मान्धाता की पचास कन्याओं से विवाह किया और विश्वकर्मा से पचास महल बनवा कर तथा उनको संपूर्ण सुख सामग्री से परिपूर्ण करके योग बल से पचास शरीर धारण करके उनके साथ सुख भोगा फिर सहसा विरक्त होकर पुनः भजन साधन में लगकर परम शांति प्राप्त की ।
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*१४. ऋचीक-* ब्रह्मर्षि ऋचीकजी भृगुवंशी थे । महाराजा गाधि से उनकी पुत्री और विश्वामित्र की बहिन सत्यवती को ऋचीकजी ने माँगा था । गाधि ने सोचा कन्या छोटी है और मुनि बूढ़े हैं किन्तु नहीं कहने से मुनि के क्रोध का भय था । उन्होंने कहा- यदि आप एक सहस्त्र श्याम कर्ण घोड़े ला दें तो मैं आपको अपनी कन्या दे दूंगा । राजा ने यह उनसे होना असंभव समझा था किन्तु मुनि वरुण से माँग लाये तब उन्हें कन्या देनी पड़ी । सत्यवती को धर्मपत्नी रूप में प्राप्त करके ऋषि प्रसन्न हुये । 
अपनी सासु गाधि की रानी तथा अपने धर्मपत्नी की प्रार्थना से आपने संतान के लिये दोनों को क्षीरान्न मंत्रित करके दिया था । जिससे उनकी पत्नी के ब्राह्मण और सासु के क्षत्री प्रसव हो किन्तु उन्होंने बदल लिया । ऋचीकजी ने यह योग बल से जान लिया और अपनी पत्नी से कहा-तुमने अच्छा नहीं किया है । अब तुम्हारे सतो गुणी पुत्र नहीं होगा किन्तु राजस-तामस-प्रकृति का होगा । फिर सत्यवती के विशेष प्रार्थना करने पर कहा-पुत्र तो समदर्शी होगा किन्तु पौत्र बड़ा क्रोधी होगा । पुत्र जमदग्नि और पौत्र परशुराम हुये । गाधि के विश्वामित्र हुये ।
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*१५. श्रृंगी-(१)* ब्रह्मर्षि श्रृंगी जी विभाण्डक मुनि के पुत्र थे । इन्होंने पिता से ही विद्या पढ़ी थी । ये वन में ही रहते थे । ग्राम, पूरी, नगर इनने देखा भी न था । वंग देश से पश्चिम की ओर अंग देश है । उसकी राजधानी पटना नगर है । यहां के राजा रोमपाद थे । उनके देश में दुष्काल पड़ा । ज्योतिषियों ने बताया-श्रृंगी ऋषि यहां आयें तो वर्षा हो जायगी । कानपुर जिले में बिल्हौर स्टेशन से मकनपुर जाते हैं उसी प्रदेश में श्रृंगीपुर ग्राम आता है । मकनपुर ही विभाण्डक ऋषि का आश्रम था । 
राजा रोमपाद ने श्रृंगी को लाने के लिये वेश्यायें नियुक्त की । वे नौका द्वारा उस समय वहां पहुँचती थीं जब आश्रम में विभाण्डक नहीं होते थे । विभाण्डक जब दूर जाते थे तब श्रृंगी के एक O ऐसी रेखा लगा जाते थे । उसमें यदि स्त्री जाय तो भस्म हो जाय । वेश्याओं का गान सुनकर स्वयं श्रृंगी ही उससे निकल कर उनके पास चले गये । वे स्त्री तथा पुरुष का भेद तो जानते ही नहीं थे । कुछ दिन में वेश्यायें ऋषि को ले आयीं और वर्षा हो गई । सुनते हैं विभाण्डक की लगाईं हुई उस रेखा में अभी भी स्त्री को नहीं जाने देते । 
*(२)* दूसरे ऋषि श्रृंगी शमीक ऋषि के तरुण पुत्र थे । महान तपस्वी दुःसह तेज संपन्न और महाव्रत धारी थे । इनके पिता शमीक के गले में राजा परीक्षित् ने मृतक सर्प डाल दिया था । तब इनने परीक्षित् को सात दिन में तक्षक सर्प काटने का शाप दिया था । 
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*१६. शमीक-* ब्रह्मर्षि शमीक गौओं के स्थान में बैठते थे और गौओं का दूध पीते समय बछड़ों के मुख से जो फेन निकलता था, उसी को खा-पीकर तपस्या करते थे । मौन व्रत का पालन करते थे । इनके पास भूखे प्यासे राजा परीक्षित् आये थे और न बोलने से इनके कंधे पर मरे हुये सर्प को रखकर चले गये थे । इनके पुत्र का नाम श्रृंगी ऋषि था । राजा परीक्षित् को शाप देने पर इनने अपने पुत्र को फटकारा था और गौरमुख शीलवान् शिष्य को सन्देश देकर राजा परीक्षित् के पास भेजा था । ये महान् भक्त थे ।
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*१७. गुरु-* ब्रह्मर्षि वृहस्पती अंगिरा के पुत्र हैं । कच के पिता हैं । देवताओं के पुरोहित हैं । इन्होंने भरद्वाज मुनि को आग्नेय अस्त्र दिया था ।
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*१८. वकदाल्भ्य-* ब्रह्मर्षि वकदाल्भ्य एक प्राचीन ऋषि हैं, जो युधिष्ठिर की सभा में विराजमान् होते थे । इनने युधिष्ठिर को ब्राह्मणों का महत्त्व बताया था । इनने इन्द्र को चिरजीवियों के दुःख सुख कहे थे । ये दत्तात्रेय के उपदेश से भगवद् भजन में लगे थे । प्रभु ने इन्हें दर्शन दिया था । हरि की शुभाशीर्वाद से इनकी दाल्भ्य संहिता त्रिताप को नष्ट करने वाली तथा कार्य सिद्ध करने वाली है ।
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*१९. जमदग्नि-* ब्रह्मर्षि जमदग्नि ऋचीकजी के पुत्र हैं । इनकी माता का नाम सत्यवती था । ये और्व के पौत्र और च्यवन के प्रपौत्र हैं । इनकी पत्नी रेणुका थी । ये परशुरामजी के पिता हैं । रेणुका के पैर और शिर तपने पर इनने सूर्य पर क्रोध किया था और शरण में आने पर अभयदान दिया था । ये बड़े तेजस्वी महर्षि थे ।
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*२०. जाबालि-* ब्रह्मर्षि जाबालि विश्वामित्रजी के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक हैं । आप अयोध्या के अष्ट मुनि मन्त्रियों में भी हैं ।
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*२१. पर्वत-* ब्रह्मर्षि पर्वतजी को देवर्षि भी कहा जाता है । ये नारदजी के भानजे हैं ।
(क्रमशः)

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