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*खुशी तुम्हारी त्यों करो, हम तो मानी हार ।*
*भावै बन्दा बख्शिये, भावै गह कर मार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ बिनती का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भजन बल से वेश्या का उद्धार*
*छप्पय-*
*गनिका गहबर१ पाप,*
*किये अविहत२ अति औंडे३ ।*
*पर-पुरुषन सें भोग,*
*रिझाये पापी भौंडे४ ॥*
*हाड चाम अरु आंति,*
*मूत्र भिष्टा जिन मांही ।*
*गीड़ रींट रत मांस,*
*वदन तैं लाल चुचाहीं ॥*
*अंत-कल सुकृत हृदय,*
*रट राम सनातन मय भई ।*
*राघव प्रकट प्रलोक को,*
*चढ़ विमान गनिका गई ॥८८॥*
वेश्या ने निषिद्ध२ कर्मों द्वारा अति गहरे३ और भयंकर१ पाप किया थे । परपुरुषों से भोग किया था, बुरे४ पापी प्राणियों को रिझाया था ।
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जिन पुरुषों के शरीर में हड्डियां, चमड़ी, आंतें, मल, मूत्र, गीड़, रींट और मांसादि ही भरे थे, मुख से लाल टपकती थी । उनमें अनुरक्त रहती थी....
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किन्तु अन्तकाल में कोई पूर्व के करे हुए पुण्यों के बल से हृदय में वैराग्य हो गया जिससे राम नाम रटकर सनातन ब्रह्ममय हो गई । और यह प्रकट है कि- वह वेश्या विमान पर चढ़कर परलोक को गई थी ।
वेश्या तीन तो प्रसिद्ध ही हैं-
✿एक तो पिंगला जो जनकपुर में रहती थी और दत्तात्रेय के चौबीस गुरुओं में भी है ।
✿दूसरी जीवन्ती नामक जो तोता को हरिनाम पढ़ाया करती थी ।
✿तीसरी वह जो संतों के उपदेश से रंगनाथ जी के लिये बहुमूल्य मुकुट बनवाकर ले गई थी तथा मंदिर की पेड़ियों पर मासिक धर्म हो गई थी और अति दुःखी हुई थी तब भगवान् ने अपना मस्तक बढ़ाकर वहां पेड़ियों पर ही उसके हाथ से मुकुट धारण किया था । पीछे उसने अपना सर्वस्व भगवान् के समर्पण करके भजन ही किया था और अन्त में भगवान् की कृपा से परम धाम प्राप्त किया था ।
(क्रमशः)

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