शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

(“अष्टमोल्लास” ४९/५१)

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” ४९/५१)
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*हमकूं बार बहुत ही लागी,*
*नृप ज्यावधरी सुनो बड़भागी ।*
*समझाये ज्ञानदास जन मांणिक,*
*आज्ञा भई गवन का वांणिक ॥४९॥*
हे बड़भागी राजा ज्यावधरी ! तुम हमारी बात सुनो, हमको यहां बहुत समय लग गया है, अत: अब अधिक समय हम यहां नहीं रह सकते । फिर ज्ञान दास जी और माणिकदासजी को भी समझाया और कहा, अब यहां से जाने की आज्ञा हो गई है ऐसी ईश्‍वर की आज्ञा है ॥४९॥
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*ज्ञान माणक दास को बहु उदासी*
*सब ही साथ जो भयौ तयारू,*
*गुरु समझाये वारंवारू ।*
*ज्ञानदास अरु माणिक दासू,*
*स्वामी बिछरत भये उदासू ॥५०॥*
यह सुनकर सभी साथ चलने को तैयार हो गये । किन्तु गुरुदादू ने सबको बार बार समझाया । स्वामी दादूजी का वियोग होता देख कर ज्ञानदास जी और माणिक दास जी विशेष रूप से उदास हो रहे थे ॥५०॥
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*ज्ञान माणक दास ने कहा हम साथ चलेंगे*
*हम तो स्वामी संग ही धावें,*
*अहनिसि गुरु जी दरसन पावें ।*
*ऐसो दु:ख जु कैसे सहिये,*
*गुरु सेवा कर लाहो लहिये ॥५१॥*
फिर ज्ञान दास माणिक दास जी ने कहा स्वामी जी महाराज हम तो आपके संग ही चलेंगे । साथ चलने से हमको दिन रात आप गुरु देव जी का दर्शन होता रहेगा । आपसे अलग रहें ऐसा दु:ख हम कैसे सह सकेंगे । साथ रहने से तो गुरु सेवा का लाभ मिलता रहेगा, और अलग रहने से उससे वंचित रहेंगे ॥५१॥
(क्रमशः)

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