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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी ~ उपजणि का अंग २८ - ८/११)*
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*आत्म बोधी अनुभवी, साधु निर्पख होइ ।*
*दादू राता राम सौं, रस पीवेगा सोइ ॥८॥*
जो साधक आत्मानुभवी हैं तथा निष्पक्ष साधु स्वभाव वाला भगवद्भक्त हैं । वह ही ज्ञानमार्ग द्वारा चलकर उस ब्रह्म को प्राप्त कर सकेगा । क्योंकि वह उस रामरस को पीकर उसमें मस्त हो रहा है ।
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*प्रेम भक्ति जब ऊपजै, निश्चल सहज समाधि ।*
*दादू पीवे राम रस, सतगुरु के प्रसाद ॥९॥*
सद्गुरु की कृपा से जब हृदय में प्रमाभक्ति पैदा होती है तब मन निश्चल होकर समाधि में रामरस का पान करता हैं । भक्ति के बिना नहीं ।
वैराग्य शतक में- शंकर भगवान् के चरणों में प्रीति हो, हृदय में जन्म मृत्यु का भय हो । संसारी भाई बन्धुओं से ममता न हो । हृदय में कामादिकों का विकार न हो । स्त्री के शरीर में आसक्ति न हो । संसारी लोगों के संसर्गजन्य दोषों से रहित पवित्र शान्त एकान्त वन में निवास हो, और मन में वैराग्य हो तो इससे बढ़कर कोई वांछनीय पदार्थ नहीं है ।
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*प्रेम भक्ति जब ऊपजै, पंगुल ज्ञान विचार ।*
*दादू हरि रस पाइये, छूटै सकल विकार ॥१०॥*
साधक के हृदय में पहले प्रेमा भक्ति पैदा होती है । उससे अन्तःकरण की शुद्धि होने से ब्रह्म ज्ञान पैदा होता है । ब्रह्मज्ञान से अज्ञान की निवृत्ति होने से सारे विकार नष्ट हो जाते हैं । तब साधक का मन भक्तिरस में डूबा हुआ ब्रह्म को प्राप्त हो जाता हैं ।
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*दादू बंझ बियाई आत्मा, उपज्या आनन्द भाव ।*
*सहज शील संतोष सत, प्रेम मगन मन राव ॥११॥*
शुद्धभक्तिभाव से युक्त बुद्धि में जब ब्रह्मविचार की जिज्ञासा उत्पन्न होती है । तब सारे बुद्धि के विकार नष्ट हो जाते हैं । उस समय साधक का मन, शील, संतोष आदि गुणों से युक्त ब्रह्मविचार में डूबा हुआ निरपेक्ष राजा की तरह सुशोभित होता है । ज्ञान वैराग्य भक्ति के पुत्र होने से भक्ति द्वारा ही बढते हैं । भागवत में- ज्ञान वैराग्य को भक्ति का पुत्र बतलाया है । ये मेरे दोनों पुत्र वैराग्य और ज्ञान नाम वाले कष्ट पा रहे हैं । ऐसा कहा है ।
(क्रमशः)
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