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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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(“अष्टमोल्लास” ३७/३९)
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*तिन में दोय रहे सिघासन,*
*बसंत राइ जावधरी आसन ।*
*बसंत राइ इजावलि पाई,*
*सहर बलेलि ज्यावधर जाई ॥३७॥*
इनमें से दो पुत्र राज करने के लिये रहे, बसंत राइ और जावधरी, बसंत राइ को इजावली नगर का राज्य मिला और जावधरी को बलेली नगर का राज्य मिला ॥३७॥
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*सात सो राणीयों को घर के लीये आ देश*
*नृप दोऊ जब भये तयारू,*
*सप्त से राणी वचन उचारू ।*
*अब स्वामी हमको कछु कहिये,*
*घर बन मांहि कहां सो रहिये ॥३८॥*
दोनों राजा जब तैयार हो गये तो ७००(सात सौ) राणियों ने पूछा, स्वामिन हमको भी कुछ बताइये, हम घर में रहे या बन में ॥३८॥
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*स्वामी कहै, आज्ञा तुम ऐसी,*
*करो भजन घर ही में बैसी ।*
*सुनो नृप ज्यावधरी बाता,*
*हमरी आत्म है तुम्हरी माता ॥३९॥*
तब स्वामी जी ने कहा, तुम घर में रहकर ही भजन करो । फिर दादूजी ने राजा ज्यावधरी को कहा, ये राणियां हमारी आत्मा है और तुम्हारी मातायें है ॥३९॥
(क्रमशः)

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