गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

*अवतारतत्त्व*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*बार बार यह तन नहीं, नर नारायण देह ।*
*दादू बहुरि न पाइये, जन्म अमोलिक येह ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ चेतावनी का अंग)*
================
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
*मनुष्य में ईश्वर का सब से अधिक प्रकाश - अवतारतत्त्व*
श्रीरामकृष्ण - तुम लोग भक्त हो, तुमसे कहने में हानि नहीं – आजकल मुझे ईश्वर के चिन्मय रूप का दर्शन नहीं होता । साकार नर-रूप में उनका दर्शन करता हूँ । (ईश्वर के रूप का दर्शन, स्पर्श तथा आलिंगन करना मेरा स्वभाव है । अब ईश्वर मुझसे कह रहे हैं, ‘तुमने देह धारण की है, साकार नर-रूपों के साथ आनन्द करो ।’
“वे तो सभी भूतों में विद्यमान हैं, परन्तु मनुष्य में अधिक प्रकट हैं ।
.
“मनुष्य क्या कम है जी ! ईश्वर का चिन्तन कर सकता है, अनन्त का चिन्तन कर सकता है; दूसरा कोई प्राणी ऐसा नहीं कर सकता ।
“दूसरे प्राणियों में, वृक्षलताओं में तथा सर्व भूतों में वे हैं, परन्तु मनुष्य में उनका अधिक प्रकाश है । “अग्नि-तत्त्व सर्व भूतों में है, सब चीजों में है, परन्तु लकड़ी में अधिक प्रकट है ।
.
“राम ने लक्ष्मण कहा था, ‘भाई, देखो हाथी इतना बड़ा जानवर है, परन्तु ईश्वर का चिन्तन नहीं कर सकता ।’
“फिर अवतार में अधिक प्रकट हैं । राम ने लक्ष्मण से कहा था, ‘जिस मनुष्य में राग-भक्ति देखो – भाव में हँसता है, रोता है, नाचता है – वहीँ पर मैं हूँ ।’”
.
श्रीरामकृष्ण चुपचाप बैठे हैं । थोड़ी देर बाद फिर बातचीत करने लगे ।
श्रीरामकृष्ण – अच्छा, केशव सेन बहुत आता था । यहाँ पर आकर तो वह बहुत बदल गया । हाल में तो उसमें बहुत कुछ विशेषता आ गयी थी । यहाँ दलबल के साथ कई बार आया था । फिर अकेले आने की इच्छा थी । केशव का पहले वैसा साधुसंग नहीं हुआ था ।
.
“कोलूटोला के मकान पर भेंट हुई । हृदय साथ था । केशव सेन जिस कमरे में था, उसी कमरे में हमें बैठाया । मेज पर शायद कुछ लिख रहा था, बहुत देर बाद कलम छोड़कर कुर्सी से नीचे उतरकर बैठा । हमें नमस्कार आदि कुछ नहीं किया ।
.
“यहाँ पर कभी आता था । मैंने एक दिन भावविभोर स्थिति में कहा, ‘साधु के सामने पैर पर पैर रखकर नहीं बैठना चाहिए; उससे रजोगुण की वृद्धि होती है ।’ वह जब भी आता, मैं स्वयं उसे नमस्कार करता था; तब उसने धीरे धीरे भूमिष्ठ होकर नमस्कार करना सीखा ।
.
“फिर मैंने केशव से कहा, ‘तुम लोग हरिनाम लिया करो, कलियुग में उनके नाम-गुणों का कीर्तन करना चाहिए ।’ तब उन लोगों ने खोल-करताल लेकर हरिनाम करना प्रारम्भ किया ।*(*श्री केशव सेन खोल-करताल लेकर कुछ वर्षों से ब्रह्मनाम कर रहे थे । श्रीरामकृष्ण के साथ १८७५ में साक्षात्कार होने के बाद से विशेष रूप से हरिनाम तथा माँ के नाम का ‘खोल-करताल’ लेकर कीर्तन करने लगे ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें