गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

*अकलि चेतन का अंग १४९(९/१२)*

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*आत्म मांहै ऊपजै, दादू पंगुल ज्ञान ।*
*कृतम् जाइ उलंघि करि, जहां निरंजन थान ॥*
*आत्म बोध बँझ का बेटा, गुरु मुखि उपजै आइ ।*
*दादू पंगुल पंच बिन, जहाँ राम तहँ जाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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*श्री रज्जबवाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*अकलि चेतन का अंग १४९*
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सब अंगहु१ आगे खड़ी, अकलि२ अकल३ पहचान ।
रज्जब खबर४ अगम की, आतम को दे आन ॥९॥
कला रहित ब्रह्म३ को पहचानने के सभी साधनों२ से आगे ज्ञान१ स्थित है अर्थात सबसे श्रेष्ठ है, ज्ञान ही अन्त:करण में आकर जीवात्मा को अगम ब्रह्म का समाचार४ देता है ।
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अकलि१ विहूणां२ अकल३ को, यहां पिछाणे कौन ।
रज्जब बुद्धि विचार बिन, रीते४ आतम भौम ॥१०॥
ज्ञान१ हीन२ कौन प्राणी यहां कला रहित ब्रह्म३ को पहचान सकता है ? यदि बुद्धि विचार हीन है तो समझना चाहिये कि जीवात्मा रूप भवन खाली४ ही है ।
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रज्जब आतम राम बिच, दीसै अकलि१ दलाल ।
कूंची कुमति कपाट की, खोलैं ताला साल२ ॥११॥
आत्मा और राम के बीच में ज्ञान१ दलाल रूप भासता है तथा कुबुद्धि रूप कपाट के दु:ख२ रूप ताले को खोलने के लिये ज्ञान ही कूंची है अर्थात ज्ञान से ही कुबुद्धि नष्ट होकर दु:ख सर्वथा नष्ट होता है अन्यथा नहीं ।
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अकल१ अकलि२ माँहिं धरयाँ, सब विद्या अरु वेद ।
परापरी३ पर ब्रह्म का, भूत सु पावै भेद४ ॥१२॥
कला रहित ब्रह्म१ संपूर्ण विद्या और वेद, सब ज्ञान२ में ही स्थिर है । परात्पर३ परब्रह्म का रहस्यमय४ स्वरूप प्राणी ज्ञान से ही प्राप्त करता है ।
(क्रमशः)

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