गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

*= चतुर्थ बिन्दु = ज्ञान, माणक को उपदेश =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ चतुर्थ बिन्दु ~*
*= ज्ञान, माणक को उपदेश =*
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दादूजी महाराज के विराजने पर दोनों बालक भी प्रणाम करके हाथ जोड़े सामने बैठकर बोले - भगवन् त्रिताप से कैसे बचा जाय ? दादूजी बोले - भाइयो परमात्मा के भजन द्वारा परमात्मा परब्रह्म का यथार्थ स्वरूप जानने से ही बचा जाता है । दोनों बालकों ने प्रार्थना की, आप कृपा करके भजन की पद्धति और ज्ञान के साधन बताकर हमको त्रिताप से बचाइये ।
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दादूजी ने उन दोनों को अधिकारी जानकार ज्ञानोपदेश द्वारा उनके हृदय में ज्ञान - भानु का प्रकाश प्रकट कर दिया । फिर कहा - ऐसे ज्ञान से युक्त रहोगे तो जैसे गंगा जल के प्रवाह में स्थित गजराज को वनाग्नि नहीं जला सकता, वैसे ही तुमको त्रिताप नहीं जला सकेंगे । तुम निसंग होकर रहो । दादूजी पटेलाद से प्रस्थान करने लगे तब ज्ञानदास और माणकदास भी गुरुदेव दादूजी के साथ ही चलने लगे । दादूजी ने कहा - यहां ही भजन करो । किंतु उन दोनों की प्रबल इच्छा साथ चलने की ही थी । अतः वे साथ ही चल पड़े ।
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*= आबू पर्वत पर सिद्धों से गोष्टी =*
पटेलाद से विचरते हुये आप सब आबू पर्वत पर पधारे । वहां के भीलों ने आप लोगों से अच्छा प्रेम किया और जहां विशेष रूप से सिद्ध लोग निवास करते थे वे स्थान बताये । सिद्धों के स्थानों में भी सिद्धों ने इन का अच्छा सत्कार किया । फिर सिद्धों के साथ बिचार गोष्टियाँ होने लगी ।
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एक दिन सिद्धों ने पूछा आपके बिचार में प्रभु प्राप्ति का सर्वोपयोगी श्रेष्ठ साधन क्या है ? दादूजी ने कहा -
*नाम रे, हरि नाम रे,*
*सकल शिरोमणि नामरे,*
*ताकी मैं बलिहारी जाऊंरे ॥टेक॥*
*दुस्तर तारे पार उतारे,*
*नरक निवारे नामरे ॥१॥*
*तारण हारा भव जल पारा,*
*निर्मल सारा नामरे ॥२॥*
*नूर दिखावे तेज मिलावे,*
*ज्योति जगावे नामरे ॥३॥*
*सब सुख दाता अमृत राता,*
*दादू माता नामरे ॥४॥*
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उक्त पद बोलकर दादूजी ने अपने विचार में जो प्रभु प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ और सर्वोपयोगी साधन परमात्मा का नाम चिन्तन था वह बताया । दादूजी का उक्त कथन सिद्धों को अति रुचिकर हुआ । कहा भी है -
"यूं' सुन सिद्ध सकल उर राखा ।"
(आत्म बिहारी प्रकरण ६)
अर्थात उक्त नाम चिन्तन का माहात्म्य इस प्रकार सुनकर सकल सिद्धों ने अपने हृदयों में यही निश्चय रखा कि परमात्मा की प्राप्ति के लिये परमात्मा का नाम चिन्तन वास्तव में श्रेष्ठ और सर्वोपयोगी साधन है ।
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आबू पर्वत पर दादूजी अपने शिष्य ज्ञानदास, माणकदास दोनों के साथ लोहापोली स्थान पर एक पक्ष रहे । कहा भी है -
"उहां सुथल इक लोहा पोली ।
रह्या पक्ष दिन कीन्ही होली ॥"
(आत्म बिहारी)
(क्रमशः)

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