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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज,व्याकरण वेदांताचार्य श्रीदादू द्वारा बगड़,झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज,बगड़ झुंझुनूं । साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी ~ विनती कौ अंग ३४ - ५७/६०)*
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*दादू आत्म जीव अनाथ सब, करतार उबारै ।*
*राम निहोरा कीजिये, जनि काहू मारै ॥५७॥*
यह जीवात्मा सब प्रकार से असहाय अनाथ है । इसलिये जगत् को बनाने वाले परमात्मा को पुकारते हैं की-हे राम ! अनाथ प्राणियों पर कृपा कीजिये, जिससे उनको कामादिशत्रु नहीं मार सके ॥५७॥
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*अर्श जमीं औजूद में, तहाँ तपै अफताब ।*
*सब जग जलता देख कर, दादू पुकारैं साध ॥५८॥*
जैसे पृथिवी और आकाश के मध्य में सूर्य तपता हुआ संसार के प्राणियों को संतप्त करता है । उसी प्रकार सारे संसार को त्रिविध तापों से संतप्त देख कर संत जन प्रार्थना करते हैं कि आप विविध तापों से जलते हुए संसार की रक्षा करें ॥५८॥
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*सकल भुवन सब आत्मा, निर्विष कर हरि लेइ ।*
*पड़दा है सो दूर कर, कश्मल रहण न देइ ॥५९॥*
हे राम ! आप संपूर्ण भुवनों के संपूर्णलोकों की अविद्या को हर लो और अधिक से अधिक निर्मल करके अज्ञान रुपी पडदे को दूर कर दो । जिससे कहीं भी कोई पाप शेष न रहे और साथ में ही दर्शन देने की भी कृपा कीजिये ॥५९॥
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*तन मन निर्मल आत्मा, सब काहू की होइ ।*
*दादू विषय विकार की, बात न बूझै कोइ ॥६०॥*
सभी प्राणियों के तन मन और बुद्धि निर्मल हो जाय और कोई भी प्राणी कहीं पर भी इस लोक में विषयविकार सम्बन्धी बात भी न करें । हे नाथ ! ऐसी कृपा कीजिये ॥६०॥
(क्रमशः)
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