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*दादू जब लग राम है, तब लग सेवक होइ ।*
*अखंडित सेवा एक रस, दादू सेवक सोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*श्रीकृष्ण अनुग भक्त*
*वन धाम संग श्री कृष्ण के,*
*अनुग सुचित रहबो करै ॥*
*चन्द्रहास मधुवर्त्त, रु रक्तक पत्रक जेते ।*
*मधुकंठों सु विशाल, रसाल सुपत्री तेते ॥*
*प्रेमकन्द रसदान, शारदा बकुल कुशल कर ।*
*पयद शुद्ध मकरन्द, प्रीति से सेवित गिरधर ॥*
*राघव समयो देख कर,*
*चतुर इच्छित आगें धरै ।*
*वन धाम संग श्री कृष्ण के,*
*अनुग सुचित रहबो करै ॥१३५॥*
भगवान् श्रीकृष्ण के १६ अनुग भक्त शांत और एकाग्र चित्त से घर तथा वन में सदा कृष्ण के साथ ही रहते हैं । वे ये हैं – *१.चन्द्रहास, २.मधुवर्त्त, ३.रक्तक, ४.पत्रक, ५.मधुकंठ, ६.विशाल, ७.रसाल, ८.सुपत्री, ९.प्रेमकन्द, १०.रसदान, ११.शारदा, १२.बकुल, १३.कुशलकर, १४.पयद, १५.शुद्ध, १६.मकरन्द ।* ये गोवर्द्धन गिरि को धारण करने वाले भगवान् श्रीकृष्ण की सेवा प्रीति से करते थे और वे चतुर लोग समय देखकर इच्छित पदार्थ कृष्ण के आगे धरते थे ।
(क्रमशः)
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