शनिवार, 29 मई 2021

*गुरु और शिष्य(पाद्पद्म)*

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*दादू अंबर धरती सूर शशि, सांई, सब लै लावै अंग ।*
*यश कीरति करुणा करै, तन मन लागा रंग ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
https://youtu.be/VsBi35c6gis
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ**मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*गुरु और शिष्य(पाद्पद्म)*
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*मूल छप्पय –*
*राघव राखे राम जी, जन के पग जल तैं अधर ॥*
*इक श्री सम्प्रदा महन्त, शिषन सुरसरी दृढ़ाई ।*
*इक हि कहा एकान्त, पाँव जिन बोरे जाई ॥*
*भुवि परिक्रमा देहुं, आप यह आरम्भ कीन्हों ।*
*षट वर्ष लौं अटि खोज, आय उन दर्शन दीन्हों ॥*
*शिष पट तारयो सुर ध्वनी,* 
*गुरु मंजन करत टेरयो मधुर ।*
*राघव राखे राम जी,* 
*जन के पग जल तैं अधर ॥१४५॥*
गंगा तट पर एक श्री संप्रदाय के महन्त जी रहा करते थे । एक समय उन्होंने पृथ्वी की परिक्रमा करने का विचार किया । तब उनके शिष्यों ने कहा – हम आपके दर्शन किये बिना यहां कैसे रहेंगे ?
महन्त जी ने शिष्यों से कहा - तुम गंगा जी को मेरा ही स्वरूप जान करके रहो । एक जो अति श्रद्धालु शिष्य था उसे एकान्त में कहा – गंगाजी को मेरा स्वरूप जानकर पूजा करना किन्तु गंगाजी में पैर रखना आदि बन्द कर देना ।
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मैं पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाऊंगा । स्वयं गुरुजी ने ही यह कहकर पृथ्वी-परिक्रमा आरम्भ कर दी । खूब खोज पूर्वक तीर्थादि का स्नान करते हुये छः वर्ष तक भ्रमण करके निज स्थान पर आकर शिष्यों को दर्शन दिया । तब जो शिष्य गंगा में स्नानादि नहीं करता था, उसकी गुरु जी के आगे निन्दा की । फिर गुरुजी ने उसका श्रेष्ठ भाव प्रकट करने के लिये, गंगाजी के जल में कटि पर्यन्त प्रवेश करके स्नान करते समय जो गंगा में पैर नहीं रखता था उसी शिष्य से अपने शरीर को साफ करने का वस्त्र मंगवाया । वह धर्म संकट में पड़ गया ।
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इधर गंगा में पैर नहीं रखना चाहिये और उधर गुरुजी की आज्ञा भी माननी चाहिये । तब गंगाजी ने प्रकट होकर मधुर स्वर से कहा – देखो यहां से गुरुजी तक कमल हैं, तुम कमल के पत्तों पर पैर रखते हुए अधर ही जाकर वस्त्र दे आओ । शिष्य ने वैसा ही किया । उस समय शिष्य और वस्त्र दोनों को ही गंगाजी ने तार दिया । राघवदास जी कहते हैं – गंगा द्वारा रामजी ने ही भक्त के पैर जल से अधर रक्खे थे ।
(क्रमशः)

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