रविवार, 9 मई 2021

*'मैं कर्ता, मेरा घर' अज्ञान । जीवन का उद्देश्य 'डुबकी लगाना'*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*पंडित, राम मिलै सो कीजे ।*
*पढ़ पढ़ वेद पुराण बखानैं, सोई तत्त्व कह दीजे ॥*
*आतम रोगी विषम बियाधी, सोई कर औषधि सारा ।*
*परसत प्राणी होइ परम सुख, छूटै सब संसारा ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. १९३)*
================
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
(७)
श्रीरामकृष्ण - (प्रताप से) - देखो, तुम्हारे ब्राह्मसमाज का लेक्चर सुनकर आदमी का भाव आसानी से ताड़ लिया जाता है । मुझे एक हरिसभा में ले गये थे । आचार्य थे एक पण्डित, नाम समाध्यायी था । कहा, ईश्वर नीरस हैं, हमें अपने प्रेम और भक्ति से उन्हें सरस कर लेना चाहिए । यह बात सुनकर मैं तो दंग रह गया । तब एक कहानी याद आ गयी ।
.
एक लड़के ने कहा था, मेरे मामा के यहाँ बहुत से घोड़े हैं - गोशाले भर । अब सोचो, अगर गोशाला है, तो वहाँ गौओं का रहना ही सम्भव है, घोड़ों का नहीं । इस तरह की असम्बद्ध बातें सुनकर आदमी क्या सोचता है? यही कि घोड़े-सोड़े कहीं कुछ नहीं हैं ! (सब हँसते है ।)
एक भक्त - घोड़े तो हैं ही नहीं, गौएँ भी नहीं हैं ! (सब हँसते हैं ।)
श्रीरामकृष्ण - देखो न, जो रस-स्वरूप हैं, उन्हें कहता है 'नीरस'; इससे यही समझ में आता है कि ईश्वर क्या चीज हैं, उसने कभी अनुभव भी नहीं किया ।
.
*'मैं कर्ता, मेरा घर' अज्ञान । जीवन का उद्देश्य 'डुबकी लगाना'*
.
श्रीरामकृष्ण - (प्रताप से) - देखो, तुमसे कहता हूँ । तुम पढ़ेलिखे बुद्धिमान और गम्भीर हो । केशव और तुम मानो गौरांग और नित्यानन्दः दोनों भाई थे । लेक्चर देना, तर्क झाड़ना, वादविवाद यह सब तो खूब हुआ । क्या तुम्हें ये सब अब भी अच्छे लगते हैं ? अब सब मन समेटकर ईश्वर पर लगाओ । अपने को अब ईश्वर में उत्सर्ग कर दो ।
.
प्रताप – जी हाँ, इसमें क्या सन्देह है; यही करना चाहिए, परन्तु यह सब जो मैं कर रहा हूँ, उनके (केशव के) नाम की रक्षा के लिए ही कर रहा हूँ ।
श्रीरामकृष्ण - (हँसकर) - तुमने कहा तो है कि उनके नाम की रक्षा के लिए सब कुछ कर रहे हो; परन्तु कुछ दिन बाद यह भाव भी न रह जायगा । एक कहानी सुनो ।
.
किसी आदमी का घर पहाड़ पर था, घर क्या, कुटिया थी । बड़ी मेहनत करके उसने बनाया था । कुछ दिन बाद एक बहुत बड़ा तूफान आया । कुटिया हिलने लगी । तब उसे बचाने के लिए उस आदमी को बड़ी चिन्ता हुई । उसने कहा, हे पवन देव, देखो महाराज, घर न तोड़ियेगा । पवन देव क्यों सुनने लगे ? कुटिया चरचराने लगी । तब उस आदमी ने एक उपाय सोच निकाला ।
.
उसे याद आ गया कि हनुमानजी पवन के लड़के हैं । बस, घबराया हुआ वह कहने लगा - दोहाई है, घर न तोड़ियेगा, दोहाई है, हनुमानजी का घर है । कितनी ही बार उसने कहा, 'हनुमानजी का घर है', 'हनुमानजी का घर है’, पर इससे कोई लाभ न हुआ । तब कहने लगा, 'महाराज, लक्ष्मणजी का घर है - लक्ष्मणजी का ।'
.
इससे भी कुछ हल न हुआ । तब कहा, 'सुनो, यह श्रीरामचन्द्रजी का घर है, देखो महाराज, इसे अब न तोड़िये । दोहाई है, जय रामजी की ।’ इससे भी कुछ न हुआ । घर चरचराता हुआ टूटने लगा । तब जान बचाने की फिक्र हुई । वह घर से निकल आया । निकलते समय कहा – ‘धत्तेरे घर की !’
.
(प्रताप से) “केशव के नाम की रक्षा तुम्हें न करनी होगी । जो कुछ हुआ है, समझना, उन्हीं की इच्छा से हुआ है । उनकी इच्छा से हुआ और उन्हीं की इच्छा से जा रहा है; तुम क्या कर सकते हो? तुम्हारा इस समय कर्तव्य है कि ईश्वर पर सब मन लगाओ - उनके प्रेम के समुद्र में कूद पड़ो ।"
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें