सोमवार, 21 जून 2021

*१६. सांच कौ अंग ~ ४१/४४*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*१६. सांच कौ अंग ~ ४१/४४*
.
हठ३ हरि कूं भावै नंहीं, सहज४ भला सब ठांम ।
कहि जगजीवन सूधि५ मंहि द्रवै दया करि रांम ॥४१॥
{३. हठ=बलपूर्वक) (४. सहज=साधारण रूप से)
{५. सूधि=सीधा(सरल) मार्ग}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि परमात्मा को हठ अच्छी नहीं लगती सहज रहने से सर्वत्र भला होता है । सहज व सीधा रहने पर ही प्रभु कृपा करते हैं ।
.
हठ निग्रह कीजै तहां, भगति हाथ थैं जाइ ।
कहि जगजीवन सांच परि, रांम बिराजै आइ ॥४२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जहां हठ व निग्रह या अवज्ञा है वहाँ भक्ति नहीं होती । प्रभु तो सत्य पर ही विराजते हैं ।
.
कलि मांहि निबहै६ नहीं, कोटि करै जे कोइ ।
कहि जगजीवन रांम रटि, हरि भजि आनंद होइ ॥४३॥
(६. निबहै=निर्वाह हो सकता है)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि इस कलियुग में कोइ करोड़ों यत्न करले उसमें वो आनंद नहीं आयेगा जो राम स्मरण व भजन में है ।
.
रांम ह्रिदै हठ नांम का, मठ मंहि मंगल७ गाइ७ ।
कहि जगजीवन हरि भगत, हरि तजि अनत न जाइ ॥४४॥
(७-७. मंगल गाइ=आनन्द मानता है)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हृदय में राम नाम का हठ व मन रुपी घर में आनंद हो ऐसे में भक्ति उस भगवद् स्वरूप को छोडकर अन्यत्र कहीं नहीं जाती है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें