मंगलवार, 22 जून 2021

शब्दस्कन्ध ~ पद #.३८

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.३८)*
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*३८. यतिताल
*क्या कीजै मनिखा जन्म को,*
*राम न जपहि गँवारा रे ?*
*माया के मद मातो बहे,*
*भूल रह्या संसारा रे ॥टेक॥*
*हिरदै राम न आवई,*
*आवै विषय विकारा रे ।*
*हरि मारग सूझै नहीं,*
*कूप परत नहीं बारा रे ॥१॥*
*आपा अग्नि जु आप में,*
*तातैं अहनिशि जरै शरीरा रे ।*
*भाव भक्ति भावै नहीं,*
*पीवै न हरि जल नीरा रे ॥२॥*
*मैं मेरी सब सूझई,*
*सूझै माया जालो रे ।*
*राम नाम सूझै नहीं,*
*अंध न सूझै कालो रे ॥३॥*
*ऐसैं ही जन्म गमाइया,*
*जित आया तित जाये रे ।*
*राम रसायन ना पिया,*
*जन दादू हेत लगाये रे ॥४॥*
https://youtu.be/SbGGAjTRqHk
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भा० दी०-हे मूर्ख मन: ! त्वया राम नाम न स्मृतं, तर्हि त्वदीयमनुष्यजन्मनोऽन्यत्कि प्रयोजनं स्यादिति त्वमेव वद इदं नरजन्म तु हरिसेवायै नतु विषयसुखाय । तत्तु सर्वत उपलभ्यते । त्वं तु प्रभुं विस्मृत्य मायामदेनोन्मत्तं संसार एव भ्रमसि । त्वदीयं हृदयं न रामनाम कदा पि स्मरति किन्तु विषयविकारानेव चिन्तयति । येन हरि रवश्यं प्राप्यते, तं भक्तिमार्ग तु न पश्यसि । किन्तु विषयकूपं दृष्ट्वा ऽपि तस्मिन्नेव पतितुं गच्छसि । अहङ्कराग्नौ सततं शरीरं भस्मीकरोषि । श्रद्धा भक्तिर्वा न ते प्रिया भवति । नच हरिभक्तिरसं पिवति । अहंममेति विकारोत्थवार्तामेव जल्पन् सततं मायाजाले निबद्धमसि । हे अन्ध नहि तं समुपस्थितं कालमपि पश्यसि । नच रामं स्मरसि । नहि त्वया प्रेम्णा सानुरागं कदापि भक्तिरस:पीतः । अहो यत आगतोऽसि तत्रैव पुनर्गन्तु मिच्छसि । श्रीभागवते मनुष्यजन्मन: फलं हरिस्मरणमेव निगदितम् ।
उक्तंहि-
एतावान् सांख्ययोगाभ्यां स्वधर्म परिनिष्ठया ।
जन्मलाभः परः पुंसा मन्ते नारायणस्मृतिः ॥
अन्तकाले तु पुरुष आगते गतसाध्वसः ।
छिन्द्यादसङ्गशस्त्रेण स्पृहां देहेऽनु ये च तम् ॥
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हे मूर्ख ! यदि तूं ने राम नाम का स्मरण नहीं किया इस मनुष्य जन्म का क्या अन्य प्रयोजन होगा, यह तुम ही बतलाओ । यह मनुष्य जन्म तो हरि की सेवा के लिये ही मिला है, न कि विषय सुखों को भोगने के लिये, क्योंकि विषय सुख तो अन्य जन्मों से भी सबको मिलता ही रहता है । तू तो प्रभु को भूल कर माया मद से उन्मत्त हो कर इस संसार में ही विचरण कर रहा है । तेरा हृदय राम का चिन्तन न करके विषय विकारों का ही चिन्तन करता रहता है ।
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जिस मार्ग से चलने पर हरि की अवश्य प्राप्ति होती है, उस प्रभु भक्ति मार्ग को तू ने देखा भी नहीं और विषय-कूप को देख कर के भी उसी में गिर रहा है । तेरे को श्रद्धा भक्ति प्रिय नहीं लगती और न हरि-रस का पान ही करता है । अहं और मम इन विकारों से उत्पन्न वार्ता को ही करता हुआ माया-जाल में गिर रहा है । हे अन्धे ! क्या तेरा काल भी तुझे नहीं दीखता जो तेरे सामने ही खड़ा है फिर भी तू राम नाम को याद नहीं करता । तू ने अपने मनुष्य जन्म को व्यर्थ ही खो दिया । कभी प्यासा होकर हरि रस का पान भी नहीं किया ।
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अतः चौरासी के चक्र में ही घूमता रहा भागवत में लिखा है कि-
सांख्य योग तथा स्व-धर्म परायणता आदि समस्त साधनों के फलस्वरूप अन्त कल में भगवान् का स्मरण रहे, यही मनुष्य जन्म का परम लाभ है ।
मृत्यु का समय आने पर मनुष्य घबड़रते नहीं किन्तु वैराग्य रूपी शस्त्र से शरीर और उससे सम्बन्ध रखने वालों के प्रति अपनी ममता को काट डाले ।
(क्रमशः)

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