रविवार, 27 जून 2021

*श्रीरामकृष्ण तथा विरोधी शास्त्रों का समन्वय*

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*ज्यों जाणों त्यों राखियो, तुम सिर डाली राइ ।*
*दूजा को देखूं नहीं, दादू अनत न जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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(३)
*श्रीरामकृष्ण तथा विरोधी शास्त्रों का समन्वय*
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श्रीरामकृष्ण अपने कमरे में आकर बैठे । बलराम आम ले आये थे । श्रीरामकृष्ण श्रीयुत राम चैटर्जी से कह रहे हैं, अपने लड़के के लिए कुछ आम लेते जाओ । कमरे में श्रीयुत नवाई चैतन्य बैठे हैं । ये लाल रंग की धोती पहनकर आये हैं ।
उत्तरवाले लम्बे बरामदे में श्रीरामकृष्ण हाजरा से वार्तालाप कर रहे हैं । ब्रह्मचारी ने श्रीरामकृष्ण को हरताल भस्म दिया है । वहीं बात हो रही है ।
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श्रीरामकृष्ण - ब्रह्मचारी की दवा मुझ पर खूब असर करती है । आदमी सच्चा है ।
हाजरा - परन्तु बेचारा संसार में पड़ गया - क्या करे ! कोन्नगर से नवाई चैतन्य आये हुए हैं । परन्तु संसारी होकर लाल धोती पहनना !
श्रीरामकृष्ण - क्या कहूँ ! मैं देखता हूँ, ये सब मनुष्य-रूप ईश्वर ने स्वयं धारण किये हैं, इसी कारण किसी को कुछ कह नहीं सकता ।
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श्रीरामकृष्ण फिर कमरे के भीतर आये । हाजरा से नरेन्द्र की बात कह रहे हैं ।
हाजरा - नरेन्द्र फिर मुकदमे में पड़ गया है ।
श्रीरामकृष्ण - शक्ति नहीं मानता । देह धारण करके शक्ति को मानना चाहिए ।
हाजरा - नरेन्द्र कहता है, मैं मानूँगा तो फिर सभी लोग मानने लगेंगे, इसीलिए मैं नहीं मान सकता ।
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श्रीरामकृष्ण - इतना बढ़ना अच्छा नहीं । अब तो शक्ति के ही इलाके में आया है । जज साहब भी जब गवाही देते हैं, तब उन्हें गवाहियों के कटघरे पर उठकर खड़ा होना पड़ता है ।
श्रीरामकृष्ण मास्टर से कह रहे हैं- "क्या तुमसे नरेन्द्र की भेंट नहीं हुई ?"
मास्टर - जी नहीं, इधर नहीं हुई ।
श्रीरामकृष्ण - एक बार मिलना और गाड़ी पर बिठाकर ले आना । (हाजरा से) अच्छा यहाँ उसका क्या सम्बन्ध है ?
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हाजरा - आपसे उसे सहायता मिलेगी ।
श्रीरामकृष्ण - और भवनाथ ? शुभ संस्कार के हुए बिना यहाँ कभी इतना आ सकता है ?
"अच्छा, हरीश और लाटू सदा ही ध्यान किया करते हैं, यह कैसा ?"
हाजरा - हाँ, ठीक तो है, सदा ध्यान करना कैसा ? यहाँ रहकर आपकी सेवा करे, तो बात दूसरी है ।
(क्रमशः)

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