रविवार, 27 जून 2021

*१६. सांच कौ अंग ~ ६५/६८*

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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*१६. सांच कौ अंग ~ ६५/६८*
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तमै ताप त्रिष्णां जलै, गरम नरम दिल दांम ।
कहि जगजीवन अलह लहै, इसक दिखावै धांम१७ ॥६५॥
(१७. इसक दिखावै धांम=भगवत्प्रेम ही भगवान् से साक्षात्कार करा सकता है)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि तुम्हारी सभी तृष्णायें समाप्त हो कठोर ह्रदय सदय हो तभी ईश्वर मिलेंगे और यह भगवद् प्रेम ही प्रभु से साक्षात्कार करवाता है ।
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पूजवान१ पूजै सकल, ताहि न पूजै कोइ ।
कहि जगजीवन हरिजन पूजै, हरि समान जे होइ ॥६६॥
(१. पूजवान=पूजा करने वाला)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि पुजारी तो सभी की पूजा करता है पर उसकी कोइ नहीं करता है संत कहते हैं कि जो परमात्मा के बंदो को पूजे वे उसी के समान हो जाते हैं ।
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जन२ को गाहक रांमजी, जन हरि कै हाथ बिकान ।
कहि जगजीवन अन्यत्र, बस्तु न दीनी जांन ॥६७॥
(२. जन=भक्तजन)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हरिभक्त जन के कद्रदान स्वयं प्रभु हैं वे उनके हाथ तो बिक जाते हैं एक प्रेम जैसी अन्य कोइ वस्तु नहीं दी जा सकती है ।
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कहि जगजीवन हरि भगत, बोलै सोई सांच ।
रांम नांम रसना ह्रिदै, आंन तजै सब कांच ॥६८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु भक्त सत्यवादी होते हैं उनकी जिह्ला और ह्रदय में प्रभु नाम रहता है अन्य विषयों को वे कांच के टुकड़े की भांति त्यागते हैं ।
(क्रमशः)

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