गुरुवार, 24 जून 2021

*आप गये मिलि साधु रिझाये*

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*ज्यों रसिया रस पीवतां, आपा भूलै और ।*
*यों दादू रह गया एक रस, पीवत पीवत ठौर ॥*
*जहँ सेवक तहँ साहिब बैठा, सेवक सेवा मांहि ।*
*दादू सांई सब करै, कोई जानै नांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
https://youtu.be/JL5BkqT3sZo
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*हारि बुलाय रु ब्राह्मण च्यार हि,*
*मुंड मुंडाय रु साधु बनाये ।*
*गांव हि नाम हि बूझ महन्तन,*
*नाम कबीर सु लेरु बुलाये ॥*
*संतन आवत आप लुके कित,*
*राम उतारि चहूं दिशि आये ।*
*रूप कबीर बनाय बहुतक,*
*आप गये मिलि साधु रिझाये ॥११४॥*
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उक्त प्रकार हार जाने पर भी ब्राह्मणों को ईर्ष्या ने पुनः आ घेरा । उन्होंने चार ब्राह्मणों को बुलाकर, मूंड मुंडवा कर साधु बना दिये …
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और उनको कहा - तुम सब ग्रामों में साधुओं के पास जाकर कहो - अमुक दिन कबीरजी के यहाँ भण्डारा है, सो आप सबको बुलाया है, कृपा करके अवश्य पधारना । ऐसा कह कर चारों ओर भेज दिया । उन लोगों ने ग्रामों में महन्त संतों के नाम पूछ पूछ कर और उनके यहां जा जाकर सब को निमंत्रण दिये और कहा - कबीरजी ने आग्रह किया है, आप अमुक दिन अवश्य पधारना ।
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नियत दिन को बहुत संख्या में संत जन कबीर के यहां आने लगे । यह देख कर कबीर तो कहीं जाकर छिप गये । तब भगवान् बहुत-सी खाद्य सामग्री लेकर वहां कबीर के रूप में प्रकट हुये और संतों को चारों ओर यथा योग्य स्थानों में उतार दिया अर्थात् आसन लगवा दिये…
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तथा बहुत-से कबीर के रूप बनाकर भोजन की व्यवस्था कर दी । यह सुनकर कबीर भी घर आये और सेवा द्वारा संतों को प्रसन्न किया । यह ऐसा विचित्र भंडारा हुआ कि हरि बिना हो ही नहीं सकता था ।
(क्रमशः)

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