शनिवार, 26 जून 2021

शब्दस्कन्ध ~ पद #.४२

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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.४२)*
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*४२. काल चेतावनी राग गौड़ी । पंजाबी त्रिताल*
*काहे रे नर करहु डफाण,*
*अंत काल घर गोर मसाण ॥टेक॥*
*पहले बलवंत गये विलाइ,*
*ब्रह्मा आदि महेश्‍वर जाइ ॥१॥*
*आगैं होते मोटे मीर,*
*गये छाडि पैगम्बर पीर ॥२॥*
*काची देह कहा गर्वाना,*
*जे उपज्या सो सबै विलाना ॥३॥*
*दादू अमर उपावनहार,*
*आपहि आप रहै करतार ॥४॥*
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भा० दी०-हे जीवात्मन् ! आत्मानं सर्वश्रेष्ठंमत्वा किमर्थं गर्वमनुभवसि ! अन्तकालेतु तवाऽपि श्मशान एव शरणमिति मत्वा मा गर्वं कुरु ।
उक्तं श्रीशङ्कराचार्येण-
मा कुरु धनजनयौवनगर्वं हरति निमेषात्काल: सर्वम् । त्वतः पूर्वं ये रम्या: शुभारम्भाः बलवन्तः सुमेरुगुरवस्तेऽपिसर्वे कालमुखेन निगीर्णाः । किं बहूक्त्या, ब्रह्मा, महेशस्तथाऽन्ये ऽपि दैतयाः अमरप्रख्यास्तेऽपि कालवशं गताः । यतोहि काल:सर्वान् कवलीकुर्तमुद्यतोऽस्ति । तयनित्यस्य शरीरस्य विषये कोऽभिमान: । जातस्यहि ध्रुवं मृत्यु रिति गीतोक्तेः । शाश्वतं तु केवलं ब्रह्मैव अविनाशित्वात् । अविन्तशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ॥इति वचनात् । अविनाशीवारेऽयमात्मेतिश्रुतेश्च ।
उक्तहि वासिष्ठे-
न तदस्तीह यदयं काल: सकलघस्मरः ।
असते तज्जगज्जातं प्रोत्याब्धिमिव वाडवः ॥
समस्तसामान्यतया भीमः कालोमहेश्वरः ।
दृश्यसत्ता मिमां सर्वां कवली कर्तुमुद्यतः ।
तस्मादभिमानं परित्यज्य॥
-ईश्वर एवानुचिन्त्योहर्निशमिति भावः ।
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हे जीव ! तू अपने को सबसे श्रेष्ठ मानता हुआ इस शरीर का अभिमान क्यों कर रहा है, क्योंकि अन्त में तो तेरा भी घर शमशान में ही होगा । तेरे से पहले जो इस संसार में रमणीय शुभकर्म करने वाले तथा उच्चता में सुमेरु के सदृश गुरु थे, उन सब को काल ने निगल लिया । फिर इस अनित्य शरीर की तो बात ही क्या है ? यह तो मरा हुआ ही है । जो पैदा होता है, उसका विनाश निश्चित है ऐसा गीता कहती है । शाश्वत तो केवल ब्रह्म ही है । ऐसा श्रुति में लिखा है । 
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योगवासिष्ठ में कहा है कि –
भयंकर काल रूपी महेश्वर संपूर्ण दृश्य प्रपंच को निगल जाने के लिये सदा उद्यत रहता है, क्योंकि उसके लिये सारी वस्तुयें सामान्य रूप से ग्रास बनाने योग्य है । वाड़वाग्नि उमडे हुए समुद्र को सूखा देती है, उसी प्रकार यह सर्वभक्षी काल भी उत्पन्न जगत् को ग्रास बना लेता है ।
(क्रमशः)

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