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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*१६. सांच कौ अंग ~ ५७/६०*
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मसीति१२ मांहि मुल्ला ऐ, तिहिं चढि दीनी बांग१३ ।
कहि जगजीवन अलह तजि, मदपी१४ खाई भांग ॥५७॥
(१२. मसीति=मस्जिद) (१३. बांग=उच्च ध्वनि से प्रार्थना)
(१४. मदपी=मद्य पीने वाला, नशेबाज)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मस्जिद में मुल्ला ने अजान की बांग लगाई संत कहते हैं कि अल्लाह को याद करने के बजाय वो दिखाने के चक्कर में पड़ गया और उसकी स्थिति वैसी होगयी जैसे मद्य पान करने वाला भांग खा ले । नशा तो है ही ।
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भीतर खुदी खुदाइ तजि, खर१ ज्यूं मूये तांगि२ ।
कहि जगजीवन खसम के, एक न आई आगि३ ॥५८॥
(१. खर=गधा) (२. तांगि=आकाश की और पैर कर) {३. आगि=आगे (सम्मुख)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आत्मा ने अतंर से परमात्मा की कृपा या खुदाई का भरोसा छोड़ दिया और जैसै गधा टांगों को आसमान की और उंचा कर मालिक को प्रसन्न करने के उद्देश्य से लौटता है । किन्तु इस प्रकार जीवों के ये क्रियाकलाप प्रभु को एक भी अच्छा नहीं लगता है ।
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निष्प्रेही४ निरवांण पद, प्रेही५ प्रवरति आस ।
परम पुरुष भजि बिषै तजि, सु कहि जगजीवनदास ॥५९॥
{४. निस्प्रेही=निःस्पृह(इच्छारहित)} {५. प्रेही=स्पृही(इच्छावान्)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो संसार से उदासीन है वे तो निर्वाण या मोक्ष चाहते हैं व जिन्हें आशा है वे भांति भांति की कामनाएं करते हैं अतः सभी विषय छोड़कर भगवन्नाम भजो ।
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महजिद६ कुन सत बंदगी, नपसर ज्यंदगी रोस ।
कहि जगजीवन सुखन गत, तौ साहिब को क्या दोस ॥६०॥
{६. महजिद=मस्जिद(मुसलामानों का उपासनागृह)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मस्जिद में ही कौन सी सत्य की बंदगी होती है या पूजा होती है । संत कहते हैं निराश जीव ही जीवन में क्रोध करते हैं यदि हम सिर्फ सुख ही परमात्मा से मांगते रहे वो भी बिना भजन के तो वह कैसे सम्भव है ? हम इसमें फिर परमात्मा को दोष क्यों दे जबकि सुख के लिये भजन ही नहीं करा ।
(क्रमशः)
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