शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

*शीश धऱ्यो कर पाप नशाई*

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*खरी कसौटी पीव की, कोई बिरला पहुँचनहार ।*
*जे पहुँचे ते ऊबरे, ताइ किये तत सार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पारिख का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नीच भयो शिशु क्षीर न पीवत,*
*याद सु पूरव बात रहाई ।*
*अम्बर वैन सुन्यो रामानन्द हि,*
*दंड भयो मन यूं चल जाई ॥*
*देखत पाय पड़े पितु मात हि,*
*शीश धऱ्यो कर पाप नशाई ।*
*बोबन पीवत यूं पन जीवत,*
*ईश्वर जानत फेरि भुलाई ॥११७॥*
गुरुजी के शाप से ब्रह्मचारी ने चमार के घर जन्म लिया किन्तु माता का दूध नहीं पीता था । कारण - गुरु सेवा के प्रताप से उसे पूर्व जन्म की सब बात याद थी । वह सोचता था चमार के साथ व्यवहार रखने वाले वैश्य की सामग्री लाने से तो चमार के घर जन्म हुआ है, अब इस का दूध पीने से ज्ञात नहीं क्या गति हो ।
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उधर स्वामी रामानन्दजी को आकाश वाणी द्वारा सुनाई पड़ा । आपके घोर शाप रूप दंड से आपका शिष्य ब्रह्मचारी रघु१ चमार के घर जन्मा है । उस पर दया करना उचित है । वह मन में पूर्व जन्म की बात को विचार करके दूध नहीं पी रहा है ।
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ऐसे सुनकर स्वामीजी 'रघु' चमार के घर गये । स्वामीजी को घर आया देखकर रैदासजी के माता पिता स्वामीजी के चरणों में पड़ कर बोले - महाराज ! लड़का दूध नहीं पीता है, आप कृपा करके कोई उपाय करें । स्वामीजी ने लड़के के सिर पर हाथ धर कर राम मंत्र का उपदेश किया । उससे उसके पाप नष्ट हो गये ।
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फिर उसने माता के स्तनों का दूध पान किया । बालक स्वामीजी को ईश्वर रूप जान कर अपने दुःख को भूल गया । स्वामीजी ने जैसे भक्ति का उपदेश दिया, उसी प्रकार अपना अटल प्रण करके रैदास जी करने लगे ।
(क्रमशः)

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